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फूल झरे= आगे आग के फूल या शोले झाड़े ( डाले ) गथे । हेम == सीनां । पन्नारियं = पनारियों से। जावकं ढारिय=लिता डाला गया। जावकं<शा ०; अप० जावय<सं० यावक=लत, लाख का रंग | अनंनं हंक=मुख चिल्लाये। अंग== शरीर ! अंग जा नंचयं = कवंध नाचने लगे । सत्त सामंतयं = सात सामंतों ने ! शाह की प्रथम बाढ़ में इन्हीं सात सामंतों को वीर गति प्राप्त हुई थी ] । वांन=जाल, चटाई । वन सा पथ्थर्य-=शाह के पथ को रोक सी बनकर रोका । सा = वह; सदृश । पथ्थर्य - पथ, मार्ग । फौज दोऊ फटी दोनों फजें अलग अलग हो गई। जानि जूनी टटटट्ठी अड़ी हुई जान कर । नोट---रसावला छंद का लक्षण-- इस नाम के छंद को धता उपलब्ध छंद ग्रंथों में नहीं लगता परन्तु इसका लक्षण विनोहा छंद के सर्वथा अनुरूप है। विमोहा के नाम जोहो, दिजोहा द्वियोधा और विजोदा भी मिलते हैं-छंद: प्रभाकर, भानु । विमोहा' वर्ण वृत्त है ! *प्राकृत पैङ्गलम्' में इसका वर्णन इस प्रकार किया गया है अक्खर ज्ञं छा पाअ पऋि ठिा । मत्त पंचा दुणी विशिण जोहा गणा ।। II, ४५}} । [ अर्थात् जिसके प्रत्येक चरण में ॐ अक्षर दस मात्रायें और दो रगण ( ) हों । ] | संभव है कि रासोकार के समय में यह त्रिमोहा छंद रसावला' नाम से भी प्रख्यात रहा हो । | कवित्त सोलंकी माधव नरिंद, [षांन] षिलची मुष लग्न । सुबर बीर रस बीर, बीर बीरा रस पर ।। दुअन बुद्ध जुध तेरा, दुहँ हथन उपभारिय।। ते तुट्टि लुक, बथ्थ परि कढद्धि कटारियो ।। अग अग्र रुछि ठिरले बलन, अधम जुद्ध जग्गे लरन । सारंग बंध घन वाव परि, गोरी वै दिन्नौ मरन ॥ छं० ६९ रू० ६५ भावार्थ----रू० ६५.सौलंकी माधव राय का खिलजी इवाँ से मुक्काबिला पड़ा। दोनों श्रेष्ठ वीर थे ( अत: आमने सामने आते ही ) वीर रस में पग (१) नि' पाठ अन्य प्रतियों में नहीं है परन्तु डॉ० ह्योर्भले ने इसे दिया है। (२) नो०-उभ्भारिय (३) ए० के० को०-दीनी, ना०-दिन्नौ ।