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अनूठी है। पानी की धार का वर्णन त । इस रूपक में है हीं अब पानी में रहने वाला भी कोई होना चाहिये और वह 'दीर्धकाय मगर' से अच्छा और कौन कहा जा सकता था । | शब्दार्थ--७० ६६-खरग<सं० रखड्=तलवार दे० Plate N0. III ]। हटकि-रोकना । टिक टिकना--( यहाँ स्थिर होकर खड़े होने से तात्पर्य है)। जमन<सं० यत्रन । समंदसमंद)<समुद्र । राजि = गजना | हथे =घोड़े। गम् <सं० जहाथी । बर हिल्लोर=श्रेष्ठ हेिलर अर्थात् बड़ी लहर । गरुञ गोइंद--यह पृथ्वीराज के प्रसिद्ध सामंतों में था । अन्य राजाओं के साथ इसने भो रावल समरसिंह को दहेज दिया था [दियौ राज इंद=शाहुइ राजं । दियं तीस हथी सहा तेज साजं ।” सम्य २१, छं० १०८। इसने दो बार ग़ोरी को पकड़ा था [गयंद व गहित नेस । जिन दौय फेर जन हेस” ।। सम्यौ २१, छ• ६३८]। साधारणत: इसके ये नाम मिलते हैं--विन्द राव, गोविंद राय, गोविन्द राज । यह गुहिलोत (=गुहिल पुत्र) वंश का था अतएव गुहिलोत राजवंशी उपाधि हुइ' भी इसको मिली थी ( 41ोयंद राजा हुई पति” ) { गरुञ इंद की मृत्यु इसी कवित्त में स्ट वति हैं इसलिये यह प्रसिद्ध गोबिन्दाज गुहिलोत नहीं है वरन् उसका भाई या अन्य संबंधी है । प्रसिद्ध गोविन्दराज संयोगिता अपहरण के अवसर पर नृथ्वीराज के साथ था मित गरुझ गयंद कहि । वर दिल्ली सुर पान ।। हथ्थ वीर विरुझाइ चलि । धर लग्गै सुरतान ||” सन् ६१] । चंद बरदाई ने उसकी प्रशंसा इस प्रकार की है गुरू राव गोवंद चंदै सु इंदं । सुतं मंडलीके सबै सेन चंद ॥” सम्थौ ६१, छं० ११ । अंत में इस युद्ध में बड़ी वीरता से लड़कर वह पंचद हो प्राप्त हुआ [उठे हछि करि झारि कोपेज डालं । इये च्यार मीर दुवाइंड ढालं ।। उर लग्गि जंबूर अारास बने । पथ राव गोवंद दिल्ली जाने । सम्यौ ६१, छंद १४७२] । वह पृथ्वीराजके बहनोई समरसिंह गुहिलोत का निकट संबंध रहा होगा । उसने पृथ्वीराज की बहिन से विवाह किया, [ Races of N. W. Provinces of India, Elliot. Vol. I, p. 90 11 महोदय ने समरसिंह गुहिलोत तथा गोविंद गुहिलोत नामों को समझने में भूले कर दी इससे भ्रमवश ऐसा लिख गये हैं। अगले ८.० ८४ में हत बी के साथ प्रस्तुत कवित्त में वर्णित गरअ गोइंद, जैत र १ गरु के नाम से याता है । दिघि सजि= सजा हुआ दिखाई पड़ा | नीर= जल ! असि= (१) धार (२) अस्त (३) तलवार । समाहिय (सं० समाधित = समाधिस्थ)= इकट्ठे हुए, दौड़े, सामने आये । लज्जी = लज्जित कर दिया । परवाहिय'