पृष्ठ:Reva that prithiviraj raso - chandravardai.pdf/३२६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
(८८)

________________

( ८८ ) शब्दार्थ-रू० ६७---परि=गिर पडा अर्थात् मारा गया । पतंग जैसिंवपतंग जयसिंह नामक पृथ्वीराज का वीर सामंत था । पतंग का एक अर्थ सूर्य भी होता है जिससे अनुमान होता है कि जवसिंह सूर्यवंशी राजदूत था | पतंग पतिंगा । अप्पुन तन-अपना शरीर ! दझे <दह == जलान । नय=नया । पतंग :- सूर्य ! गति लीन=गति में लीन होकर । ( नोट---भारतीय शूरवीरों का यह विश्वास था कि वीर गति पाकर योद्धा सूर्य लोक जाते हैं और सूर्य लोक की प्राप्ति बड़े ही पुण्य व तपस्या द्वारा होती मानी गई है। बेचे जात मंडल अखंड अरकन के ।” गंग-गौरव, जगन्नाथदास रत्नाकर ) । ठाम<थान <स्थान । तेल टांम=तेल का स्थान अर्थात् दीपक | जाति = बत्ती । अगनि <सं० अग्नि; शनि=जुगुन् । तेल ठम वाति अगनि सकल विरुभाई'= जुगुनू जलता हुआ दीपक अकेले बुझा देता है । [ नोट-----जुनू का दीपक बुझाना अशुभ सूचक माना गया है। एकले अन्य केले । अप<अप्प अपना | विरुभाईय== बुझा देना । रन रण । केरी==कुमारी कन्या । पंच लगाइय' का पंथ लगाइय' पाठ भी मिलता है, जिसका अर्थ मार्ग पर लगा दिया अर्थात् मार डाला' होगा । दर-श्रेष्ठ । बरथौचरण किया। दैइ देकर । दाहन= (संज्ञा) जलाने का (समिक्षा या न्याहुति से तात्पर्य है)। दुज्जन<दुजन-शत्रु । दअन<दव'=दादाग्नि ! जीतेजीत लिवा । ताहि== उसकी । पुज्जै- बराबरी । कबन = हि० कौन<प्रा० कवन, कवण, कोउण <से कः पुनः ।। । नोट-इस रू का ह्योर्नले महोदय द्वारा किया हुआ अर्थ जान लेना भी उचित होगा "Patang Jaysingh fell; he burns his body like a moth ( into a flame ); a new existence he obtained in the sun having torn many enemios in shreds. (Just as that (moth) by itself puts out the flame of the wick of on oil lanıp (by falling into it); 50 (he), while being killed himself, also killed the enemy, felling five of them to the ground. War he wedded as a virgin, scorning fate and destroying enemies, be defeated the demons on earth. Who else can equal that." pp. 42-43. | कवित रुपौ बीर पुंडीर, फिरी पारस सुरतांनी । सस्त्र बीर चमकंत, तेज आरुहि सिर ठांनी ९ ।। {१) ना०--शस्त्र (२) ए० ---तानी