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( १०३ ) हैं ) । ईस= शिव । गह्यौ कर चाइ = हाथ में चाव से पकड़ना चाहा । यथ्थि <सं० अर्थ = धन; [ अथि<१० अस्थि = हड्डीह्योर्नले ] ।। रू. ७७-जाम<सं० याम (तीन घंटे के बराबर समय): प्रहर (विकृत रूप पहर ) । [नोट---सूर्योदय होने पर अर्थात् लगभग छै बजे ( दूसरे दिन ) युद्ध प्रारंभ हुआ था। पहले घंटे में जैत का संबंधी गिरा दूसरे में रहने प्रमार और तीसरे में रान का संबंधी । कुकि= झुका (युद्ध के लिये) । तीरबाण । जेथ था जेम= तरह, समान, भाँति । तत्तौ = रारन या जलता हुआ । ततौ परयौ= जलता हुआ गिरा । धर-भूमि, धरती । अग्यारे-अखाड़ा करके अर्थात् युद्ध करके जंघारौ-योगी जेंवार । जंवारा---यह रुहेल खंड के दक्षिण पूर्व के तुअर वंशी राजपूतों की एक बड़ी और लड़ाकू जाति है ? भूर और तरई जंवारे इसकी दो शाखायें हैं। धप्पूधाम की अध्यक्षता में ये इस देश में आकर बसे थे । धप्पूधाम की वीरता और बदायूं के नायक से भीग्ण मोर्चा लेने पर उनकी अनेक कवितायें सुनी जाती हैं। एक समय कोइल (अलीगढ़) के सभी थे बड़े शक्ति शाली थे और इनकी चार भिन्न चौरासियाँ थीं। पंडीरों के साथ इनके बरावर के संबंध होते हैं । ये अपनी लड़कियाँ चौहान और वड़गूजरों को देते हैं तथा झाल, जैत और गुहिलोतों की लड़कियाँ पाते हैं । [Races of N.W.Provinces of India, Eliot, Voll, p. 141]: जंवारा जो इस युद्ध में मारा गया है, उसका मूल नाम न तो इस रूपक में है, न अगले ८० ७८ में अर न रू० ८४ में ही । जंार जाति के वीर पृथ्वीराज की सेना के नायक रहे हैं । भीम जंवारा जिसका वर्णन रासो सम्यौं प्रथम में है, पृथ्वीर के साथ कन्नड़ गया था और उसने लौटते समय बड़ा वीर युद्ध करके प्राण दिये थे [ रासो सम्यौ ६१, छं० ११६, २४५,०-५४]-. बरिय' च्योर रवि रत्त । पंग दल बल ग्राहयौ ।। तब जंध भीम ! म स्वामित तन तुट्य ।। सगर गौर सिर मौर। रेह रयिय अमेरिय ।। उड़त हंस अकास । दिद्ध घन अच्छरि बेरिया !! जेथार' सूर अवधूत मन । असि विभूति अंगह घसिय ।। पुच्छयौ सुजान त्रिभुवन्न सकल ! को लु लोक लोकें बलिय' ।।छं०२४५४॥ नोट-रू० ७५-के अंतिम दो चरणों का अर्थ ड० ह्योने के अनुसार 1962 E-Birth and death these two painful statos, ap not case in neeting with this ( ननुअ<नति, नाती = दौहित्र और इसीलिये संबंधी ) kinstnen; this time belove, 10