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[ या---यह सुनकर ! बीर लंगरी राय मुकाबिले के लिये चलः । सात मैंदान योद्धाओं के बीच (==साथ) वह वीर हुङ्करता हुआ रा में द इ अर्थात् युद्ध भूमि में कूदा ) । सात सामंतों के बीच (= साथ) उसने ( शुओं में मृत्यु का दोन भय छा दिया । ! रणभूमि में ! धक्का देत र हाँक लगाते हुए उसने । अपनी तलवार चलाने की कुशलता से ( शों की ) तलवारों ( क मूठे ; ढीली कर दो। ( तव ) चंद कवि कहते हैं कि शिल ताये ये अंगों में विभूति युक्त वीर ने हँसते हुए हाँक लगाई । बा - नई अंदर जं.-५२ ) बिभूति अंगों में भले हुए, बीर ने हँसने हुए हाँक त --- उसकी वह अनुपम वीरता देखकर ) अंग में भुन ले हुए, र लन्ट’ पर चंद्रमा सुशोभित किये हुए ( शिव ने } उसे हँसते और पुकार हुए, उतादिन कि', ह्योर्नले 3 ।। | शब्दार्थ--रू० ७६ ---सित कर } कुकि बजे रन जंगं अरश में जंग करने के ये उकुकर | सजि अन शर से ) मुसज्जि होकर । अन<सं० श्रवण = कान । गरी= लंगरी राय का वशन पहले आ चुका है। अगले ८.० ८० में संग नाम भिलए हैं और रू ८१ ६ लेलंगरी राय शाया हैं। लंगरी जाति के राजपूतों का ठीक पता नहीं चलता } लंग, चालुक्य या सोलंकी वंश के राजपूतों का एक शाबा थे । लेसह राजपूत मुलतान के समीप रहते थे । इनका पता अब नहीं चलता, कुछ मार डाले गये और कुछ मुसलमान बना लिये गये,' | Tajas':31:27. '1!), २, , }). 200 }। लंगह ौर ले। नानों में बहुत कुछ अनुरूदत्ता ६ । धेरले शहर का अनुमान लत हैं कि तैगरी राव इसी युद्ध में मारा गया ! भाग अगले ! ८१ की टिप्पणी में देखिये ! ता=(युद्ध में लगा । अनगिना (सास) भंग हुए, अर्थात निर्भयता से । धीर-धैर्यवान् । ८ ( मद्रि }-वर में (यहाँ 'साथ' से तात्पर्य है)। सामंत सत सद्धिात सामंतों ॐ यन्त्र ( :== } } मरन दीनं भय सायौ = मरने का दीन भय छ। दिशा | परनु क- 'ध देन हुए। हात रिन = रण में हाँक लगाते हुए । पग प्रवाह गरी मुल्ल :- तलवार के प्रवाह से तलवारें खोल दी अर्थात् तलवार चलाने की माला से तलवार की भूठे ढीली कर दीं । पारंत धक्क हात रिन = उनके हृदयों को विनि करते हुए और रण में हाँक लगाते हुए; । हसि =सते हुए ! (हबिदाई करते हुए) । हकि= चिल्लाकर । बुवा=बुलाया । अंतिम पंक्ति का अर्थ एक विद्वान् के अनुसार यह भी हैं--- भभूत, चंदन और तिलक से भिंत लँगरी ने अपने साथियों के सहित किया १ अ ) शिव से कर उसे