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१ १२२ ) हुंकार कर ( शत्रुओं झो) संग्राम ले मोड़ दिया या भगा दिया। जिने कढिढय बैर दंत गरी=जिसने वैराग्य (=योग चल ) द्वारा गोरी का दाँत तोड़ दिया । दाहिनौ-यह वही दाहिम है जिसकी मृत्यु का वर्णन रू० ७२ में हो चुका है। दाहिस होने के कारण यह प्रसिद्ध दाहिम बंधु कैमास, चामंड और चंद पंडीर का संबंधी रहा होगा । यह नरसिंह देव का अंसी (<अंशी साझीदार} भी था । नरसिंह का विस्तृत वर्णन पीछे किया जा चुका है। गिल्यौ= खा डाला, निगल लिया ( अर्थात् मार डाला ) । गसी>हि० गाँसीबाण के समान नोकदार, पैना । जिने साहि गौरी शिल्यौं ग्रान गंसी-जिसने शाह शौरी के इवानों को रांसी से मार डाला । वीर ( मानेत नादंत नादं )=यह वीर जो बांनैत कहा गया है और कोई नहीं लोहाना है जिसकी मृत्यु का वर्णन रू० ८२ में है। उक्त रू० में लिखा है कि लौहाना महमूद के साथ भारी बाण चलाता हुअर भिड़ा । मदशहाबुद्दीन Jोरी के भाई यासुद्दीन का पुत्र था और वह इस युद्ध में नहीं मारा गया था अतएव हम सब सो प्रतियों और ना० १० सं० रासो के शिल्य ( मार डाला ) पाठ को 'मिल्यौ किये देते हैं। ( मिल्यौ-मिला या सामना किया। यह भी संभव है कि मिल्यौ के स्थान पर लिखने वाले श्रमवश गिल्यौ लिख गये हों क्योंकि ग' और भ में केवल एक पड़ी पाई का भेद मात्र है) । नादत नाद-नाद करता हुआ; हुंकारता हुआ । जावलौ जल्ह=इस नाम के योद्धों का युद्ध वर्णन पिछले रूपकों में नहीं किया या है। संभव हैं कि यह लंगरी राध हो,' ह्योनले । परन्तु लंगरी राय का वर्णन फिर अगले सम्यौ ३१, छं० १४४ में हैं:-( लग्यो लंगरी लोह लंगा अमानं । ष देत पंडयौ मुरासान पानं ) और उसकी मृत्यु का वर्णन सम्यौ ६१ में जैसा कि पीछे टिप्पणी रू० ८१ में प्रमाणित किया जा चुका है, पाया जाता है। जब तिनं 'परलोक राय । दय दच्छिन जावलम । ( सम्य ६१ } अर्थात् जब प्रमार राजा तिलंग परलोक गया तो उसने दक्षिण देश जावल को दिया । इससे स्पष्ट है कि जावत दक्षिणी राजपूतों में थे । लंगरी भी दक्षिणी राजपूत था इसीलिये ह्योर्नले महोदय ने जावल को लंगरी मानने की संभावना की है । एक ज्ञावल जल्ह का बर्णन संयोगिता अपहरण वाले युद्ध में भी अाया है-(सज्यौ जावलो जल्ह चालुवय भारी ।” सम्यौ ६१ छं० १२२ ]} इस युद्ध में जल्ह की मृत्यु भी हुई थी—-[ परयौ जावलौ जल्ह सामंत भारे । जिने प्वाइरिया पंग धंधार सारे {{' सम्यौ ६१, छं० १९२८। भुध्वं <सं० अक्ष्य == जाना । हए सार मुEG == घोड़ों के सार ( शक्ति ) का मुख (प्रधान)-अर्थात् घुड़सवारों को सरदार । निसंकंतु<( स० ) नि:शक