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हाथियों की फालौं ६क्ति १ घुस कर ) कैल गई और दो त तेरह प्राण { योद्धा ) दब कर मर गये, ( उस समय ऐसा विदित हुआ कि ) इस युद्ध में ( पृराज की } हार होना मानीं हुई बाते हैं [ अर्थात्-इस युद्ध में पृथ्वीराज की हार होना अवश्यंभावी है, ऐसा मालूम पड़ा ] । ( ग़ोरी के हाथियों के पीछे पृथ्वीराज की सेना में ) फ़िरिश्ते तलवारें खींचे हुए इस पड़े और दौड़ दौड़ कर सामंतों को मारने लगे ! ( इस विकट संकट काल में ) श्रेष्ठ वीर भीम, १ सेना के एक भाग को ) चतुरंगिणी बना कर हाथी पर चढ़ कर ( उनके मुक़ाबिले के लिये } दौड़ पड़ा है। शब्दार्थ-रू० ८८-दुजन< दुर्जन ( अहाँ ग़ोरी के लिये दुर्जन रूप शत्रु पृथ्वीराज के सैनिक थे) । स्वामि<स्वामी (ग़ौरी सुलतान) ! घटकिटकना । हेटकि= रोकना ; तसबी< फा० -३ (तसबीह } सुमिरनी, जप करने की छोटी भाली । कर नं = हाथ से तोड़ा । कजलसं० कजल == काला । पंक्ति<सं० पंक्ति । बिथुरि= फैलना । सध्य सेना चहुअांदी= चौहान की सेना के मध्य में | अजै <अजय=हार । मानि जै=मान लिया गया । रारि= युद्ध दिय=दौ । बिय स तेरह=दो सौ तेरह । चेपि मानी=अणि चॅप गये (दब गये) । धामंत=दौड़ते हुए। फिरस्तन<० ८१ { फ़िरिश्ता ) फ़िरिश्तों ने । कढूिढे असि= तलवारे काढ़ (खींच } ली । दहति पिंड=शरीर जलानी ( यहाँ मारने से तात्पर्य है)। सामंत भजि= भागने वाले सामंतों को ( या ) दौड़ दौड़ कर सामंतों को । भीम--रघुवंशी राजपूत योद्धा जिसकी मृत्यु का वर्णन अगले रू० में है । बाहन ( क्रिया )-चढ़ कर । करह (<स० करभ) करिह =हाथी को । परे धाइ=दौड़ पड़ा । चतुरंग सजि= एक चतुरंगिणी सजा कर । नोट-युद्ध फल पलटने में सफल वीर भीम रघुवंशी इस युद्ध में मारा गया। चंद वरदाई ने उसकी मृत्यु का अन्य कुछ योद्धाओं की भाँति विविध वर्णन न करके अगले ८० ८६ के प्रारम्भ में ही कह दिया है----‘पर रघुबेसी अरी सेन जोडी । इससे स्पष्ट है कि भीम इस मोर्चे पर खेत रहा है। भुजंगी। परयौ रघुबंसी अरी सेन जाड़ी। हुतौ बाल चेसं मुर्ष लज्ज डाढी3 ।।। बिना लज्ज्ञ पध्धै सची दुढि पिष्य। मनो डिभरू जानि कै मीन ऋष्यौ ।। छं० १३७ । (१) ना–ज्ञाड़ी (२) नो०-१५ (३).नइo-~-डाढ़ी है।