पृष्ठ:Reva that prithiviraj raso - chandravardai.pdf/३७१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

( १३३ )

________________

पर रूक रिस ६ अरि सेस ही है। मनो एक ते झरी नीर दाही ।। फिरे अड्ड बेड्ढे उपमा न बर्दै । विश्वंक्रम्म बंसी किं स्ने गट्दै ।। ४० १३८ । परे हिंदु मेच्छं उलथे पलथी । केरै रंभ भैर ततश्थे ततथ्थी ।। गहैं अंत गिद्ध बरं जे कराली । सानों नाल कढढे कि सोभै स्रनाली ।। छं० १३ है । तुटै एक ढंग टिंकै षा धायौ । मनो बिक्रम राइ गइद पायौ ।। है हिंदु हथ्थे मलेच्छ भ्रमायौ । जनौ भीम हथीन उस्म पायौ ।। छं० १४०। ननं मानवं जुद्ध दानब्य ऐसौ । नने इंद तारके भरिश्थ कैसौ ।। कुकं५ बजि ॐकारयं पि उठे। बरं लोह पंचं वधं पंचे छुट्टै ।। छं० १४१ ।। मनो सिंध उज्झै अरुन्त छुट्टै ६ ।। रनं देवसाई सए अब पुढ्दै ।।। घनं छोर ढढल इतकंठ फेरी ।। लगै झरगरै हंस हजार एरी ।। छं० १४२ । तुदै रु डे मुंडे बरं जे करेरी ।। बरहाई रिझैं दुहूं दीन्न भेरी ।। छं० १४३ । ८.० ८६ ।। भावार्थ---८० ८६-शत्रु सेना का संहार करता हुआ वीर रघुवंशी { भीम ) मारा गया । वह अभी बिलकुल बालक था और उसके मुंह पर डाढ़ी लज्जित हो रही थी ( अर्थात् डाढ़ी के कुछ कुछ चिह्न दिखाई पड़ते थे )। शवी ने लज्जा का परित्याग कर उसे ढूंढना प्रारंभ किया और अंत में उसे ( एक स्थान पर ) देखकर उसी प्रकार खींचा जैसे मछली अपने बच्चे को खींचती है । उस (भीम) ने बढ़ती हुई) शत्रु सेना पर आघात कर उसका युद्ध (१) नो०-माही (२) ना० (३) ए० को०-भाल (४) ना०—तुटै एकटं याढ़ि के घग्गा धायौ (५) नो० झकं (६) नcि-मन सिंघ अझै अरु¥त छुट्टै (७) मा०-धम घर ढूढ' इतक्कंङ फेरी (5) ना०-जो ।