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नही बढती अर्थात् उपमा नहीं देने बनता । विश्वंक्रम्म<विश्वकर्मा । बंशी वंशज, राज, बढई, लुहार आदि विश्वकर्मा के वंश कहे जाते है। दारुन< दारु ( =लकड़ी ) का बहु वचन है । गट्टै या गढ =गढ़ना । अंग-अंत. ड़ियाँ । कराली= भयंकर । म्रनाली<सं मृणाल= कमल नाल । उलथ्ये पलथ्थी= उलटे पुलटे; विक्रनं<विक्रम = पुरुषार्थ । गोइंद {<गोविद) यह नाम विष्णु के वामनावतार की अोर संकेत करता है। कश्यप और अदिनि के पुत्र वामन ने तीन पग में सब लोको को जीत लिया और उन्हें पुरंदर को दे दिया ( विष्णु पुराण } } विष्णु पुराण में इस अवतार का केवल इतना ही हाल मिलता है, विशेष विवरण भागवत, कूर्म, मत्स्य और वामन पुराण में है। श्रीमद्भागवत में वह कथा संक्षेप में इस प्रकार वर्णित है----विरोचन के पुत्र बलि ने तपस्या और यज्ञों द्वारा इन्द्रादिक देवता को वश मे करके झाकाश, पाताल और मृत्यु लॅाक पर आधिपत्य कर लिया | देवताओं की प्रार्थना पर विष्णु ने कश्यप और अदिति के घर जन्म लिया । कश्यप का पुत्र बौना होने से वामन कहलाया । एक दिन वामन ने वलि से दान माग ! दैत्यो के शुरू शुक्र के मना करते हुए भी बत्ति ने बामन को मुहै मागी मुराद पूरी करने का वचन दे दिया । मन ते तीन पग पृथ्वी माग और बल के एदमस्तु कहते ही चामन ने अपनी इतना अकार बढाया कि तीनो लोक भर गये। अंत में बलि और उनके पूर्वज प्रह्लाद की प्रार्थना पर बलि को पाताल का राजा बना दिया गया ---‘वल चा आकास को हर पठवा पाताल' । यह भी कथा हैं कि वामन का एक पैर लकडी को डंडा था । *प्राशुलभ्ये फले लोभदुद्वा हुवि वामन.'-रघुवंश । [ ये विभिन्न कथाये erex-Sanskrit Tests. J Muir. Vol. IV, p 116ff. ] ! है == पकडकर । हुथ नर०सं० हत्ते = हि० हाथ । श्रमायौ = घुमाया । भीमपांडवो के भाई भीमसेन के लिये लिखा है कि मैं महाभारत में कौरवो के हाथियों को सेंड पकडकर घुमाते थे और फिर उन्हें पृथ्वी पर पटक कर मार डालते थे ( महाभारत ) । सं० हस्तिन्>प्र० हथ्थी>हि० हाथी--- [ “हथ्थोन’, ‘हाथी का बहुवचन है ]। दान्व-दनु के पुत्र | कश्यप की स्त्री दनु के चौदह पुत्र हुए जो दानव कहलाये ( विष्णु पुराण १।२१।४-६ ) । सं० भारत>प्रा० भारथ्थ>हि भारत, भारथ=घोर युद्ध । तारक=तारकामुर, राक्षस ने तपस्था द्वारा देवताओं से भी अधिक शक्तिं प्राप्त की और फिर सबको त्रास देने लगा, तब इन्द्र ने शिव के पुत्र कार्तिकेय की सहायता से उसका बध । किया, [ वि० वि० पः, मत्स्य पुराण, कुम्मर संभ-कालिदास ] १ : कुर्क :