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( १४१ ) अर्थात् आक्रमण किया । फुझ<जुज्झ<जुद्ध<युद्ध ! फेरि–फेर देना, पलट देना । सीव सीमा । 'त्त राहि= खेत( युद्ध क्षेत्र ) में रहा । घट घुम्मै इकडे होकर घूमने लगे } सुविहांन=प्रात:काल: यहाँ शीता दें तात्पर्य हैं ।। बिहान<पंजाबी विहान == बीत जाना । प्राइकर । दुजन मुछ कुम्मै–दुर्जनों (शत्रुयों ) के संमुख झूमने लगा । कर तेग-हाथ में तलवार लिये हुए ! झल्लि मुढि-मुह हिलाता हुआ । नहिं सुरतानह=सुलतान नहीं हूँ , ( सुलतान ने कहलाऊँगा या सुलतान न रहेग! } | पन करी=ण किया । अदिसं० अद्य>ी • अज्ञ>हिं० झाज ! हार दीह दी हुई हार पराजित करना । सुबर=(१) सुभट (२) भलीभाँति । तबहिं साह फिर पुक्क =तभी वह फिर शाह पुकारा जायगा ( अर्थात् केवल तभी वह शाह कहलावेग अन्यथा नहीं ) । नोट-(१) दूसरे दिन भीर हुसेन के पुत्र हुसेन खाँ ने मारूफ खाँ का मुजाबिला किया और उसे घायल करके गिरा दिया, यह देखकर उड़बक खाँ उसके सुकाबिले पर अाया। दोनों में बड़ी देर तक बड़ी ताक झाँक होती रही अंत में उजवक ने एक ऐसी हाथ मारा कि जिससे हुसेन खाँ के भी हरी चोट लगी और उसका घोड़ा कटकर ज़मीन पर लेट गया। इस युद्ध में शहाबुद्दीन बिकट व्यूह से क्षित तलवार लिये मरने मारने पर उद्यत था ।” रासो-सार, पृष्ठ १०२ ।। प्रस्तुत रू० में अाया हुसेन ख़ाँ ग़ोरी का योद्धा है जिसके लिये अगले रू० ६४ में लिखा है कि गहि गोरी सुरतान प्रान हुसेन उपायौ ।' यदि हुसेन खाँ ( चाहे वह मीर हुसेन को पुत्र हो या कोई अन्य हो) वही है जिसके लिये रासो-सार कहता है कि पृथ्वीराज की ओर से उसने मारूफ़ दवाँ के मुकाबिला किया तो फिर पृथ्वीराज ही को लेना सुलतान को पकड़ने के बाद उसे यों *उपार’ देती ! उखाड़ देती ( हरा देती ) ; नवा कर देती या मार डालती ] । इस प्रकार हुसेन वाँ के गोरी पक्ष का सैनिक सिद्ध होते ही रासो-सार का उपयुक्त वर्णन अनुचित सिद्ध होता है। (२) एक हुसेन ख़ाँ तातार मारूफ़ाँ का भी भाई था और जहाँ तक संभव है वह हुसेन खाँ वही थी--[ अधूब तम्मि अति वार । सम लाल पाने हस्सन इकार ” छंद १६, इस सम्यौ ४३ ]।