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कचित्त तब स्वाहिब गरी नरिंद, सत्त बानं जु ससाही । पहल बान बर बीर, हरे रधुवंस गुरांई }} दूजे बांस तकंत, भीम भट्टी बर भजिय। चहुन तिय वन, पनि अद्ध धर रञ्जिय ।। चहुअन कमांन सुसंधि करि,तीय बन हथह हरिय। तब लगि चपि प्रथिराज ने, गोरी वै गुजर गहियछं० १४७ । ८० ६३ ।। भावार्थ-रू० ६३---तब साइव शह गोरी ने सात बाण स्थिर किये [ या सात बार धनुष पर चढ़ाये हैं। पहले बाण से उसने श्रेष्ठ वीर रघुवंश गुराई को मार डाला, दूसरे बाण से उसने निशाना लगाकर श्रेष्ठ भीम भट्टी को मारा और स्वानि ( गौरी ) ने तीसरे बाण से चौहान के शरीर का मध्य भाग घायल किया । चौहान ने ( भी ) धनुष सँभालकर तीन वाण हाथ में लिये । ( परन्तु ) जब पृथ्वीराज यह करने में लगे थे तो गुजर ने गोरी को पकड़ लिया। | शब्दार्थ-रू० ६३-- बाने-सात बारा । समाही<सं० समाहित = समाधिस्थ, स्थिरीकृत, (--‘भुज सनाहित दिवसना कृत:-रघुवंश} । सत्त बानं नु समाही=सात बाण स्थिर किये अर्थात् सात बाण धनुष पर चढ़ाये । पहल बान-पहल बा ! हले–मार डाला ! गुराई, गोराज का विकृत रूप है । ( गौराज या गोविन्द=गायों का स्वामी ) ! रघुवंस गुराई-गुराई, रघुवंशी राजपूत विदित होता है । इस प्रकार अभी तक तीन युवंशी योद्धा मारे गये(१) प्रथा ( रू० ८४ ), (२) भीम ( रू० ८९ ); (३) गुराई ( रू० ६३ )। दूजै वन तकंत= दूसरे वाण से ताककर अथीत निशाना लगाकर । भेजियनष्ट किया । तिय बनतीन बाण । पान-यह शाह गोरी के लिये आया है। गोरी के लिये अभी तक सहाब, शाह आदि पदवियों का प्रयोग होता रहा है, परन्तु यहाँ पर ज्ञान का प्रयोग क्यों हुया यह विचारात्मक है। संभव है कि सुलतान पारी की प्रतिज्ञानुसार कि यदि आज दिन पलटने तक शत्रु को भलीभाँति पराजित न कर दूंगा मैं सुलतान था शाह न कहलाऊँगा (रू०६२), चंद बरदाई ने उसके लिये धन' का प्रयोग किया हो ।' चहुशांन = पृथ्वीराज ( परन्तु यह भी संभावना है कि यह चौहान वंशी कोई अन्य योद्धा हो ) 1 श्रद्धं ११) ना०--संतान समाहिय (२) नॉ७---पहल (३) ना---गुसाँइये (४) ना--दूजे वान्त कंठ (५) ना०----तीय वन है हथ रहिये ।