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धर<अर्द्ध धड़ाधे धड़ में या शरीर के मध्य भाग में । ' नोट----‘धर की जगह “घर” पाठ भी मिलता है; और घट’ १ = शरीर ) से 'घर' होना उसी प्रकार संभव है जिस प्रकार रालो में भट' से 'भर' होना ?। जिय' को यहाँ रंजन से संबंधित न कर यदि फारसी :रंज' (इख, कष्ट से निकला मान लिया जाय तो कोई हानि नहीं दीखती र अर्थ भी अच्छा हो जाता है। रंजिय<फा० , : कष्ट । अर्द्ध धर रंजिय श्राधे धड़ को काट दिया अर्थात् शरीर को मध्य भाग बायल किया { कमान सुसंधि करि= धनुग्न सम्हाल कर । सुसंधि-भली भाँति संधानना; (संधान=निशाना लगाना) अतएव कमान सुसंधि करि' का अर्थ धनुष संधानना नहीं वरन् ‘धनुष सम्हालना होगा', क्योंकि बाण संधाना जाता है, धनुष नहीं । थहरिय<ठहरिय । हथह हरिय= हाथ में ठहराये या लिये । हथह-हाथ में । लगिरा = लगे हुए। चपि= देवना ।। लगि चंपि-लगे दबे थे अर्थात् अस्त ६ । गहिब- पकड़ा। गुजर---यह संभवत: पृथ्वीराज की वही सामंत है जिसका वर्णन प्रस्तुत रासो-समय के रू० २७ र २८ में आ चुका है। ‘बह वह कहि रघुवंस रान हक्कारि से उठ्यौ तथा ३ गुजर गांवांर राज है मंद न होई के आधार पर उसका नाम राम रघुवंशी गूजर ( गुर्जर ) होना चाहिये । नोट---राजपूत वीरों की विकट मार के मारे जब यवन सेना परत हिम्मत हो उठी तो कुछ सामंतों ने मिलकर शहाबुद्दीन पर आक्रमण किया और उसे घेर कर पकड़ना चाहा । यह देखकर शाह ने एक वान से धुर्वस राम गुसाई को मारा और दूसरे से भीम भट्ठी को घायल किया तीसरा बाण जब तक चढता था कि पृथ्वीराज ने अाकर उसके गले में कुमान डाल दी। रासो-सार, पृष्ठ १०३ ! कवित्त गहि गोरी सुरतान, षान हुस्सेन उपायौ । षो ततार निसुरत्ति, लाहि कोरी कारि डारथौ ।। चामर छत्र रषत्त, वैषतेलुददे सुलतानी । जै जै जै चहुआन, बजी रन जुग जुग बानी ।। गजि बंधि वंधि सुरतांन कों, गथ दिल्ली दिल्ली नृपति ।। नर नाग देव अस्तुति करें, दिपति दीप दिवलोक पति ।। ॐ• १४८/०३४