पृष्ठ:Reva that prithiviraj raso - chandravardai.pdf/३८३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
(१४५)

________________

[उ०-चाभर छत्र रयत । सकल लुई सुरतानं ।।' छं० २४८, सम्य १६, चामर छत्र राक्ष बद्रत लुट्ट रन रारी ।।' छं० २६४, सम्यौ २४, ‘हसम हयग्ग्यय लुट्टि । लुट्टि पृष्षर एतानं ।।' छं० ६०६, सम्यौ ५.२, चामर छत्र रपते । तपत लुट्ट सुलतानी ।' छं० २६५, सन्यौ ५८ शादि प्रयोग भी रासो में हैं। अतएव प्रस्तुत रूपक के प्रथम तीसरे चरण का अर्थ यह भी होगा कि---सुलतान का बँवर, छत्र गौर डेरा डंडी सब लुट गया है। | कवित मास एक दिन तीन, सह संकट में : रुयौ । की अरज उमराउ, दंड हय मंगिय सुद्धौ ।। हये अमोल नब सहस, सर से दीन ऐरकी । उज्जल दतिय अहू, बस मुरु ढाल सु जी ।। नग मोतिय मानिक नवल, करि सलाह संमेल करि । पहिराइराज मनुहार करि, गञ्जनचे पठौ सु घर५ ।। छं० १५० रू०६६। अवार्थ–रू.० ६६-एक महीना और तीन दिन तक गौरी चंदीगृह में पड़ा रहा । जव उसके अमीरों ने प्रार्थना की और दंडस्वरूप घोड़े देना स्वीकार किया तब वह मुक्त किया गया । ( दंड में अमीरों ने ) नौं हज़ार अमूल्य बोड़े और सात सौ ऐराकी घोड़े दिये; आठ सफेद हाथी और बीस तुली हुई अच्छी ढालें दी तथा राजनुक्ता और नये माणिक्य दिये । ( इस प्रकार ) मुलह कर और शांति स्थापति करके राजा ने गजन [शज़नी नरेश] को पहिना झोढ़ा तथा अदिर सत्कार करके उसके घर भेज दिया ।। शर्थ-९० १६-संकट में रुधौ=संकट में सौंधा रहा (अर्थात् बंदीगृह में पड़ा रहा ) । अरज<अ०० (अङ्ग)= प्रार्थना । उमराउ<अ० ,० [( उमरा ) : ( अमीर ) का बहुवचन है ] ! य= घोड़े। सुद्धौ = शुद्ध हुआ (अर्थात् बंदीगृह से मुक्त हुक्का); शुद्ध= निर्मल ! नव सहस<सं० नय सहस्त्र नौ हज़ार ? सत्त सै= सात सौ ! दीन= दिये ।ऐराकी=इराक़ देश के घोड़े) । उनले दंतिय अाठ सफेद हाथी | मुरु= मुड़ना ( यहाँ ढालना से तात्पर्य समझ पड़ता है)। दाल ढाले । विंशति ( सं० )<पा० विसत<प्रा० वीसा, ( १ ) ना०----रुद्धौ ( २ ) १०---दिन ( ३ ) ना० मुर ( ४ )ना०-~-परि राई (१) ना०-~-सुधरे ।