पृष्ठ:Reva that prithiviraj raso - chandravardai.pdf/३८९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
(१५१)

________________

। १५१ :) क्रोध सभक उठा। उन्होंने कहा कि मैं उरी को फिर बाँध लें तभी सोमेश्वर का बेटा हूँ ( रू० ४५ )। चंद्राकार व्यूह में खड़े हुए चौहान के सैनिकों ने प्रतिज्ञा की कि सुलतान की सेना को छिन्न-भिन्न करके शाई को बाँध जेंगे (रू ४६)} पंचमी तिथि मंगलवार को प्रात:काल झर झर बलवान ग्रह (मंगल) के उदय होने पर महाराज पृथ्वीराज ने (ोरी से मोर्चा लेने के लिये ) चढ़ाई बोल दी ? रू० ४७ )। नगाड़ों के ज़ोर-जोर बजते ही हाथियों के बंदे घनघना उठे, वीर गरजने लगे। काश में धुल छा गई जिससे अँधेरा हो गया (रू० ५०) । सुलतान के दल वालों ने ( चौहान की सेना के ) लोहे के चमकते हुए बाणों को देखकर अनुमान किया कि क्या शरदिश ने चक्कर खाया है जो रात को श्रया जानकर तारे निकल आये हैं ( रू० ५३ )। दोनों और की सेनायें काले बादलों के समान एक दूसरे से भिड़ गई' १ रू० ५६ ) चित्रांग रावर समरसिंह अपने वायु वेगी अश्व पर चढ़ कर शत्रुओं के सिर पत्तों सदृश तोड़ती हुआ आगे बढ़ा । चाडपति के आक्रमण ने सुलतान की सेना में धूल उड़ा दी ( रू० ५७ ) रायर के पीछे क्रोधित जैत पँवार था और जैत के पीछे चामंडराय र हुसेन रवाँ थे ; चाभंड और हुसेन ने हाथियों पर चढ़कर सुलतान की चतुरंगिणी सेना के व्याकुल कर दिया तथ। धाराधिपति भट्टी ने गौरी के सैनिकों को उखाड़ फेंका ( रू.७ ५८ } } सेनापति जैत की अध्यक्षता में चौहान की सेना चन्द्रब्यूह बनाकर लड़ रही थी ( रू० ५६ ) । कबंध नाचते थे, कटे हुए सर चिल्लाते थे, साँगें घुस रही थीं, तलवारों से तलवारें बज रही थी, भैरव नाच रहे थे, गण ताल दे रहे थे । भयानक युद्ध होता रहा और पराक्रमी महाराज पृथ्वीराज क्रोधपूर्वक प्रहरी से भिड़े रहे (रू ६१) । यह देखकर सुभ ोरी को साहस भंग हो । तातार मारूफ़ डाँ ने उसे यह कड़कर प्रधा कि मेरे रहते सुलतान पर आपत्ति नहीं आ सकती (८० ६२) । सोलंक माधवराय का खिलन्दी याँ से मुकाबिला पड़ा । लड़ते लड़ते सोलंकी की तलवार टूट गई और अनेक शत्रों ने घेरकर अधर्म युद्ध से उसे मार डाला (८० ६५) । शोर की सेना समुद्र की भाँति पुरजने लगी। तब उरुश्न गइ आगे बढा जिसे यवनों ने विनष्ट कर दिया (रू० ६६) । गुरु गोइंद के पश्चात् शत्रुओं को युद्धाग्नि की अहुति देकर पतंग-जयहि भी पंचव को प्राप्त हुअा (रू० ६७) । (भान) पंडीर को चारों ओर से घेर कुर सुलतान की सेना ने उसके शिरस्त्राणु के टुकड़े टुकड़े कर डाले । वह गिरता पड़ती भिड़ा रहा और मारे जाने पर उसका कबंध पाँच पूल तक खड़ा रहा जिसे देखकर सुरलोक में जय जय का