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Theo Faro de Visit to Gbazni, Kabul and Kandhar. G. T. Vigne, p. 134; Afghanistan, Hamilton Angus, pp. 343-45; Afghanistan, Muhammad Habil; History of Afghanistan, Malleson; History of Afghanistan, Walker; Afghanistan, Godard (Paris); Geogra. phy of Ancient India, Cunningham, pp. 45-18; History of Afghanistan, Macphunn and Afghanistan, Jamaluddin Ahmad and Md. Abdul Aziz, 1936.] दिल्ली (>दिल्ली) यमुना नदी के किनारे अज्ञांश २८°३८' उत्तर र देशांतर ७७° १२' पूर्व में बसा हुआ एक प्रसिद्ध और प्राचीन नगर है जो बहुत दिनों तक हिन्दू राजाशों और मुसलमान बादशाहों की राजधानी था और जो सन् १९१२ में फिर ब्रिटिश भारत की भी राजधानी हो गया । जिस स्थान पर वर्तमान दिल्ली नगर हैं उसके चारों ओर १०-१२ मील के में भिन्न-भिन्न स्थानों में यह नगर कई बार बसा और कई बार उजड़ा। कुछ विद्वानों का मत है कि इंद्रप्रस्थ के मथूर बंशी अंतिम राजा 'दिलू ने इसे पहले पहल बसाया था, इसी से इसका नाम दिल्ली पड़ा } { पृथ्वीराज रासो सम्यौं ३-दिल्ली किल्ली प्रस्ताव में लिखा है कि पृथ्वीराज के नाना अनंगपाल ने एक बार एक गढ़ बनवाना चाहा था। उसकी नींव रखने के समय उनके पुरोहित ने अच्छे मुहूर्त में लोहे कीं एक कील मुथ्यो में गाड़ दी और कहा कि यह कील शेषनाग के मस्तक पर जा लगी है। जिसके कार आपके तोअर (तोमर) वंश का राज्य अचल हो गया। राजा को इस बात पर विश्वास न हुआ और उन्होंने वह झील उखड़वा दी । कील उखाड़ते ही वहाँ से 'रक्ल की धारा निकलने लगी। इस पर राजा को बहुत पश्चाताप हु । उन्होंने फिर वहीं कील उस स्थान पर गड़वाई, पर इस बार वह ठीक नहीं बैठी, कुछ ढीली रह गई । इसी से उस स्थान का नाम ढीली पड़ जाया जो बिगड़कर दिल्ली हो गया। दिल्ली में यह कील अब भी देखी जा सकती है ।। | परन्तु कील या स्तंभ पर ॐ शिलालेख है उससे रासो की उपयुक्त कथा का रखें इन हो जाता है क्योंकि उसमें अनंगपाल से बहुत पहले के किसी चंद्र नामक राजा । शायद चंद्रगुप्त, विक्रमादित्य } की प्रशंसा हैं । इन के विषय में चाहे जो कुछ हो पर इसमें संदेह नहीं कि ईसवी पहली शताब्दी के