पृष्ठ:Reva that prithiviraj raso - chandravardai.pdf/४००

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
(१६२)

________________

देवगिरि, यादव राजा की वहुत दिनों तक राजधानी रहा । प्रसिद्ध कलचुरि वंश का जब अध:पतन हुआ। तब इसके अलपास का सारा प्रदेश द्वार-समुद्र के यादव राजाओं के हाथ झाया। कई शिलालेखों में जो इन यादव राजाओं की वंशावली मिली है वह इस प्रकार है--- सिंघन ( १ ला ) मल्लूमि भिल्लम ( शक ११०६-१११३ ) जैतूगि (१ ला) वा जैत्रपाल, जैत्रसिंह (शक १११३-११३१) सिंघन ( २ रा) वा त्रिभुवनमल्ल ( शके ११३१-११६९ ) जैतूगि ( २ र ) वा चैत्रपाल कृष्ण व कन्हारे महादेव ( शक ११६६-११८२ ) ( शक १९८३-११६ ३) रामचन्द्र व रामदेव ( शक ११९३-१२३१) . द्वितीय सिंधन के समय में ही देवगिरि यादवों की राजधानी प्रसिद्ध हुआ । महादेव की सभा में बोपदेव और हेमाद्रि ऐसे प्रसिद्ध पंडित थे । कृष्ण के पुत्र रामचन्द्र रामदेव बड़े प्रतापी हुए। उन्होंने अपने राज्य का विस्तार खूब बढ़ाया। शके १२१६ में अलाउद्दीन ने अकस्मात् देवगिरि पर चढ़ाई कर दी। राजा जहाँ तक लड़ते वना वहाँ तक डे पर अंत में दुर्ग के भीतर सामग्री घट जाने पर उन्होंने आत्म समर्पण कर दिया। शक १२२८ में रामचन्द्र ने कर देना स्वीकार किया । उस समय दिल्ली के सिंहासन अलाउद्दीन बैठ चुका था उसने एक लाख सवारों के साथ मलिक काफ़र को दक्षिण भेजा } राजा हार गये और दिल्ली भेजे गये । अलाउद्दीन ने पर सम्मानपूर्वक उन्हें देवगिरि भेज दिया। इधर मलिक काफूर दक्षिण के और राज्यों में लूट पाट करने लगा ! कुछ दिन बीतने पर राजा रामचन्द्र का जमिता हरिपाल मुसलमानों को दुन्निा से भरकर देवगिरि के सिंहासन पर