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३----पौराणिक तारक [<तारकासुर]-- एक असुर था । यह असुर तार का पुत्र था । जब इसने एक हज़ार वर्ष तक घोर तप किया और कुछ फल न हुआ, तब इसके मस्तक से एक बहुत प्रचंड तेज निकला जिससे देवता लोग व्याकुल होने लगे, यहाँ तक कि इन्द्र सिंहासन से खिझने लगे । देवता की प्रार्थना पर ब्रह्मा तारक के समीप बुर देने के लिये उपस्थित हुए। तारकासुर ने ब्रह्मा से दो वर माँगे । प्रह्ला त यह कि मेरे समान संसार में कोई बलवान न हो दूसरा यह कि यदि मैं मारा जाऊँ तो उसी के हाथ से जो शिव से उत्पन्न हो ।' ये बर पाकर तारकासुर घोर अन्याय करने लगा । इस पर देवता मिलकर ब्रह्मा के पास गये । ब्रह्मा ने कहा--(शिव के पत्र के अतिरिक्त तारक के और कोई नहीं मार सकता । इस समय हिमालय पर पार्वती शिद के लिये तप कर रही हैं । कर ऐसी प्रयि २ कि शिव के साथ उनका संयोग हो जाय ।” देवताओं की प्रेरता से कामदेव ने जाकर शिव के चित्त का चंचल किया । अन्त में शिव के साथ पार्वती का विवाह हो गया । जब बहुत दिनों तक शिड़ के पार्वती से कोई पुत्र नहीं हुआ तब देवताओं ने घुवरा कर अदिन को शव के पास भेजा । पौत के वेश में अग्नि को देखकर शिव ने कहा--तुम्ही हमारे वीर्य को शरण करो,” और वीर्य को अग्नि के ऊपर डाल दिया । उस वीर्य से कार्तिकेय उत्पन्न हुए जिन्हें देवताोंने अपना सेनापति बनाया। घोर युद्ध के उपरांत कार्तिकेय के बस से तारकासुर मारा गया। [ विं० वि० सत्य पुराण, शिव पुराण और कुमार, संभव (कालिदास) में देखिये] । नारद-- . वेदों में ऋग्वेद मंडल ८ और ६ के कुछ मंत्रों के कर्ता एक नारद का नाम मिलता है जो कहीं इन्व और कहीं कश्यप वैशी लिखे गये हैं।