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( १६९ ) इसी शिव पार्वती विवाह प्रसंग में तुलसी ने मैना द्वारा अपना भवन उजाइने वाले नारद की खासी ख़बर ली है नारद कर में काहे बिगारा ।। भवन मार जिन्डू बसत उजा । अस उपदेश महि जिन्ह दीन्हा । ३२ वरहि लागि त। कीन्हा ।। साँचेहू उन्ह के मोह न मया ।। उदासीन धन धाम न जायी || पर घर पालक लाज न भरर । ब* कि जान प्रसव के पीर; }} परन्तु तुलसी ने विद्यापति की अपेक्षा मैना का विवाद नारद द्वारा ही मिटवाया है; वे अपनी साक्षी हेतु सप्त ऋषियों को अवश्य ले गये थे-- भयना सत्य सुनहु मम वानी | जगदंबा तव सुता भवानी ।। कबीर ने नारद को ज्ञानी स्वीकार करते हुए तथा उन्हें शिव और ब्रह्मा के समकक्ष रखते हुए भी मन की गति समझने में असमर्थ बताया है-- सिव विरंचि नारद मुनि ग्यानीं, मर्द की गति उनहूँ नहीं जानी ।। जायसी ने 'पदनावत' में नारद को झगड़ा करने वाला कहा है और *छत्ररावट' में कबीर की श्रेष्ठज्ञा प्रतिपादित करते हुए नारद के स्वमुख से अपनी पराजय अंगीकार कराई है ना-नारद तब रोई' पुकारा ; एक जोलाहै स मैं हारा ।। संस्कृत में नारद के वि० वि० के लिये नारद पुराण' देखना उचित हो । महमाय ।<महामाया | दुर्गा-आदिशक्ति (देवी)---- शुक्ल यजुर्वेद जिसनेय संहिता में रुद्र की भगिनी अंबिका का उल्लेख इस प्रकार है--हे रुड़ 1 अपनी भचिनी अंबिक के सहित हमारी दिया हुआ भाग ग्रहण करो।” इससे जाना जाता है कि शशों के विनाश यादि के लिए जिस प्रकार प्राचीन देश रुद्र नामक क्र र देवता का स्मरण करते थे, उसी प्रकार उनकी भगिनी अंचिका का भी करते थे । वैदिक काता में अंकि देवी रूद्र की भगिनी ही मानी जाती थीं । जलवकार (केन) । उपनिषद में यह अख्यायिका है-- एक बार देवताओं ने अल? कि विजय