पृष्ठ:Reva that prithiviraj raso - chandravardai.pdf/४०८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
(१७०)

________________

( १७० } हमारी ही शक्ति से हुई है। इस भ्रम को मिटाने के लिए ब्रह्म यज्ञ के रूप में दिखाई पड़ा, पर दैवतो उसे न पहचान सके । हाल-चाल लेने के लिए घले अनि उसके पास गये ! यक्ष ने पूछा--तुम कौन हो ?” अग्नि ने कहा-मैं अग्नि हैं और सब कुछ भस्म कर सकता हूँ।” इस पर उस यक्ष ने एक तिनका रख दिया और कहा-.इसे भस्म करो ।' यरिन ने बहुत ज्ञोर मारा, पर तिनका ज्यों का त्यों रह ! इसी प्रकार वायु देवता भी गये । ये भी उस तिनके को न उड़ा सके । तब सब देवताओं ने इन्द्र से कहा कि इस यक्ष का पता लेना चाहिये कि यह कौन है । जब इन्द्र गये, तब यक्ष अंतर्धान हो गया। थोड़ी देर बाद एक स्त्री प्रकट हुई जो ‘उमा हैमवती देवी थी । इन्द्र के पूछने पर 'उमा हैंमवती ने बतलाया कि यह ब्रह्म था, उसकी विजय से तुम्हें मह्त्व मिला है। तब इन्द्र शादिं देवताओं ने ब्रह्म को जाना । अध्यात्म पक्ष वाले उमा हैमवती' से ब्रह्मविद्या का ग्रहण करते हैं। तैत्तिरीय अरण्यक के एक मंत्र में दुर्गा देवीं शरणमहं प्रपद्ये वाक्य आया है, और एक स्थान पर गायत्री छन्द को एक मंत्र है जिसे सायण ने दुर्गा गायत्री कहा है। देवी-भागवत में देवी की उत्पत्ति के सम्बन्ध की कथा इस प्रकार हैं--महिनासुर से परास्त होकर सद देवता ब्रह्मा के पास गये । ब्रह्मा, शिव तथा देवताओं के साथ विष्णु के पास गये । विष्णु ने कहा कि महिपासुर के मारने का उपाय यह है कि सब देवता अपनी स्त्रियों से मिलकर अपना थोड़ा-थोड़ा तेज निकालें । सबके तेज-समूह से एक स्त्री उत्पन्न होगी जो उस असुर का वध करेगी । महिषासुर को वर था कि वह किसी पुरुष के हाथ से न मरेगा । विष्णु की आज्ञानुसार ब्रह्मा ने अपने मुंह से रक्त वर्ण का, शिव ने रौप्य वर्ण का, विष्णु ने नील वर्ण करे, इन्द्र ने विचिन्न वर्ण का, इसी प्रकार सब देवताओं ने अपना-अपना तेज निकाला और एक तेज:-स्वरूपा देवी प्रकट हुई जिसने इस असुर का संहार किया । कालिका पुराण' में लिखा है कि परब्रह्म के अंशस्वरूप ब्रह्मा, विष्णु और शिव हुए। ब्रह्मा और विष्णु ने तो सृष्टि स्थिति के लिए अपनीअपनी शक्ति को ग्रहण किया, पर शिव नै शक्ति से संयोग न किया और में योग में मग्न हो गये । ब्रह्मा अरदि देवता इस बात के पीछे पड़े किं शिव भी किसी स्त्री का पाणिग्रहण करें। पर शिव के योग्य कोई स्त्री मिलती ही नहीं थी । बहुत सोच विचार के बाद ब्रह्मा' नै दक्ष से कहा---०८विष्णु की माया के अतिरिक्त और कोई स्त्री नहीं जो शिव को लुभा सके। अतः मैं उसकी स्तुति करता हूँ। तुम भी उसकी स्तुति करो कि वह तुम्हार