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कन्या के रूप में तुम्हारे यहाँ जन्म ले और शिव की पत्नी हो ।' बह त्रिशु की माया दक्ष प्रजापति ॐ कन्या सती हुई जिसने अपने रूप अौर तप के द्वारा शिव को मोहित और प्रसद किया । दक्ष यज्ञ विनाश के समय जब सती ने देह त्याग किया, तब शिव ने विलाप करते-करते उनके शव को अपने कंधे पर लाद लिया। फिर ब्रह्मा और विष्णु ने सती के नृत शरीर में प्रवेश किया और वे उसे खंड-खंड के गिराने लगे । जहाँ-जहाँ खेती को अंग गिरा, यह वह देवी का स्थान या पीठ हुआ । जब देवता ने महामाया की बहुत स्तुति की, तब वे शिव के शरीर से निकलीं जिससे शिव का मोह दूर हुआ। और वे फिर योग समाधि में मग्न हुए। इधर हिमालय की भाषा मेनका संतति की कामना से बहुत दिनों से महामाया का पूजन करती थीं । 'महामाया ने प्रसन्न होकर मेनका की कन्या होकर जन्म लिया और शिव से विवाह किया । मार्कडेय पुराण' में चंडी देवी द्वारा शुभ निशुभ के बध की कथा लिखी है जिसका पाठ चंडी-पाठ या दुर्ग-पा० के नाम से प्रसिद्ध है और भारत में सर्वत्र प्रचलित है। काशी खड़' में लिखा है कि सरु के पुत्र दुर्ग नामक महादैत्य ने जब देवताओं को बहुत तंग किया तब वे शिव के पास गये । शिव ने असुर को मारने के लिये देवी को भेजा ! इनके अनेक नाम हैं जिनमें से ८६ हिं० श० स०, पृ० १५६३ पर दिए हुए हैं। पृथ्वीराज रासों में महामाया युद्ध-भूमि में विचरण करने वाली और वीर राति पाने चाले चौद्ध का वरण करने वाली पाई जाती हैं । | यह रूद्रों और मरुतों के जनक तथा शासक और तूफान के देवता का नाम है । वेद में ये इंद्र और उनसे भी अधिक सर्वभक्षक-अग्नि तथा काल से संबंधित पाये जाते हैं । वैदिक साहित्य में अग्नि को ही रूद्र कह डाला गया है और यह माना गया है कि यज्ञ का अनुष्ठान करने के लिये ही रुद्र यज्ञ में प्रवेश करते हैं। वहाँ रुद्र को अरिस्वरूपी, वृष्टि करने वाला और गर्जने वाली देवता कहा गया है जिससे वज़ का भी अभिप्राय निकलता है; इसके अतिरिक्त रुद्र शब्द से इद्र, मित्र, वरुण, मूषण और सोम आदि अनेक देवताओं का भी वोध होता है । युवतीं साहित्य में उन्हें काल से अभिन्न माना गया है। एक स्थान पर उन्हें मरुद्गण का पिता और दूसरे स्थान पर अंबिका का भाई भी कहा गया है। इनके तीन नेत्र बतलाये गये हैं।