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( १७२ ) और ये सब लोकों का नियंत्रण करने वाले तथा क्षेप का विध्वंस करने वाले कहे गये हैं। मानवों और पशुओं को मृत्यु और रोग के दाता इन संहार देवता की उपाधि शिव अर्थात् शुभ या वरदानी भी है तथा वायु मंडल को विशुद्ध करने और नमी को दूर करने के कारण इन्हें रोग नाशक भी कहा गया है । वेद में 'शिव' व्यक्ति वाचक नहीं है परन्तु इवती साहित्य में प्रथम तो रुद्र के प्रशंसात्मक विशेषण के रूप में और बाद में स्वयं रुद्र के लिये ही इस शब्द का व्यवहार होने लग्; परन्तु तब तक तुफ़ान से उनका संबंध विच्छिन्न हो चुका था और वे संयुक्त तथा विद्युक्त कर सिद्ध कर लिये गये। थे। इस समय तक भूल रुद्र अथवा मरुतों को स्थान एकादश ( कहीं कहीं तेंतीस ) संख्या वाले भीन झस्तियों ने ग्रहण कर लिया था । रुद्र नान से ही प्रन्यात भी हो चुके थे। विष्णु पुराण में ब्रह्मा के ललाट से रुद्र की उत्पत्ति उल्लिखन है जो बाद में ऋद्धनारीश्वर रूप में परिवर्तित हो गये थे और इसी रूप का नर भाग कालांतर में एकादश रुद्रों में बँट था इसीलिये थे परवर्ती रूद्र, शिव के लघुतर रूप कहे जाते हैं। कहीं कहीं इन रुद्रों का जन्मु कश्यप और सुरभि, ब्रह्मा और सुरभि वा भूत और सुरूप से बताया गया है और कहीं इन्हें गण देवता मानते हुये इनकी उत्पत्ति सृष्टि के प्रारंभ में ब्रह्मा की भौंहों से बताई गई है। वि पुराण के अनुसार शिव के आठ रूपों में से रुद्र एक है। कहीं कहीं उन्हें ईशान का दिकपाले भी कहा गया है । वे क्रोध रूम माने जाते हैं इसी से रस-शास्त्रियों द्वारा ये रौद्र रस के देवता भी मनोनीत किये गये हैं। भूत, प्रेत, पिशाच श्रादि के जन्मदाता ये ही प्रसिद्ध हैं। विभिन्न पुराणों में रुद्रों के नामों में अंतर भले ही मिलता हो परन्तु यह स्मरण रहना चाहिये कि वे सब शिव के नाम ही हैं। इनके अधिक प्रचलित नाम----अज्ञ, एक पाद, अहिब्रन, पैनाकी, अपराजित, व्यंबक, महेश्वर, वृषाकपि, शंभु, हरण और ईश्वर हैं । गरुड़ पुराण में इनके नाम इस प्रकार हैं-अजैकपाद, अहिब्रघ्न, त्वष्ट, विश्वरूपहर, बहुरूप, त्र्यंबक, अपराजित, वृषाकपि, शंभु, कपर्दी और रैवते । कूर्म पुराण में लिखा है कि जब प्रारंभ में बहुत कुछ तपस्या करने पर भी ब्रह्मा सृष्टि में उत्पन्न कर सके तब उन्हें बहुत क्रोध हुश्रा जिसके आवेश में उनकी आँखों से झाँसु निकलने लगे। उन्हीं अाँसुशों से भूतों और प्रेतों की सुष्टि हुई ; और तब उनके मुख से ग्यारह रुद्र उत्पन्न हुए । थे उत्पन्न होते ही बड़े जोर से रोने लगे थे इसी से इनका नाम रुद्र पड़ा है इसी प्रकार विभिन्न पुराणों में ति भाँति की कथामें मिलती हैं ।