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( १७७ ) रासो में अनेक हिन्दू योद्धाशों को वीर-राति पाने के उपरान्त सुमेरु की परिक्रमा करने वाला प्रश्नति सूर्य-लोक में स्थान पाने वाला वर्णन किया गया है। सुरग [< सं० स्वर्ग ---हिन्दुओं के सात लोकों में ले . तीसरा लोक जो ऊपर आकाश में सूर्य-लोक से लेकर व-लोक तक माना जाता है। किसी-किसी पुराण के अनुसार यह सुमेरु पर्वत पर है। देवताओं का निवास स्थान यही स्वर-लोक माना गया है और कहा गया है कि जो लोग अनेक प्रकार के पुण्य और सत्कर्म करके मरते हैं, उनकी छान! इसी लोक में जा कर निवास करती हैं। यज्ञ, दान आदि जितने पुण्य कार्य किये जाते हैं, वे सब स्वर्ग की प्राप्ति के उद्देश्य से ही किये जाते हैं। कहते हैं कि इस लोक में केवल सुख ही मुख हैं, दु:ख, शोक, रोग, मत्यु अादि का यहाँ नाम तक नहीं है। जो प्राणी जितने ही अधिक सत्कर्म करता है, वह उतने ही अधिक समय तक इस लोक में निवास करने का अधिकारी होता है । परन्तु पुण्यों का क्षय हो जाने अथवा अवधि पूरी हो जाने पर जीव को फिर कमनुसार शरीर धारण करना पड़ता है और यह क्रम तब तक चलता रहता है जब तक उसकी सयु नहीं हो जाती । यहाँ अच्छे-अच्छे फलों वाले बृक्षों, मनोहर वाटिकाशों और अप्सरा आदि का निवास माना जाता है। स्वर्ग की कल्पना नरक की कल्पना के बिलकुल विरुद्ध है। प्राय: सभी धर्मों, देशों और जातियों में स्वर्ग और नरक की कल्पना की गई है । ईसाइयों के अनुसार स्वर्ग ईश्वर का निवास स्थान है और वहाँ फ़रिश्ते और धर्मात्मा लोग अनन्त सुख भोग करते हैं । मुसलमानों का स्वर्ग ‘बिहिश्त कहलाता है । मुसलमान लोग भी बिहिश्त को युदा और फ़रिश्तों के रहने की जगह मानते हैं और कहते हैं कि दीनदार लोग मरने पर वहीं जायँगे । उनका बिहिश्त इन्द्रिय लुल की सब प्रकार की सामग्री से 'परिपूर्ण कहा गया हैं । वहाँ दूध और शहद की नदियाँ तथा समुद्र हैं, अंगूरों के वृक्ष हैं और कभी वृद्ध न होने वाली अप्सरायें हैं। यहूदियों के यहाँ तीन वर्षों की कल्पना की गई है।