ह: सारग्राहि प्रवृत्ति के अनुसार तो हमें उनके परिश्रम से लाभ उठाना ही चाहिए। मुझे प्रसन्नता है कि इ. त्रिवेदी ने इस प्रवृत्ति का परिचय दिया है । संसार में कोई भी कार्य पूर्ण नहीं कहा जा सकता, प्रस्तुत ग्रन्थ में भी त्रुटियाँ, अपूर्णताएँ हो सकती हैं, किन्तु अपने ढंग का यह पहला कार्य है, ऐसा कहते हुए मुझे संकोच नहीं है ।। मुझे आशा है कि साहित्य प्रेमी संसार डॉ० त्रिवेदी की इस कृति को सहृदयता पूर्वक अपनाए र उनकी इस गम्भीर गवे | पूर्ण कृति का सेनु- चित सादर करके उन्हें प्रोत्साहित करेगा। म श्री शुभकरण जी सेक्सिरिया के परम भारी हैं जिन्होंने अपने स्वर्ग, पिता और लघु भ्राता का चिरस्थायी स्मारक बनाने के हेतु लखनऊ विश्वविद्यालय के हिन्दी-बिभाग की ग्रन्थमालाओं के लिये अावश्यक निधि प्रदान की है। उनका यह कार्य अनुकरणीय है। प्रस्तुत पुस्तक 'सेठ केशवदेव केसरिया स्मारक-ग्रन्थमाला' का द्वितीय पुष्य है । डॉ. दीनदयालु गुप्त एम० ए०, डी० लिट० प्रोफेसर तथा अध्यक्ष,हिन्दी-विभागः । लखनऊ विश्वविद्यालय दीनदयालु गुप्त