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सोमेस' कहकर पूर्व समय से श्रृंखलित कर दिया गया है । परन्तु जयचन्द्र की प्रेरणा से शोरी को दिल्ली पर आक्रमण बाली समय इतालिस औश् चंद का द्वारिका गमन समय बयालिस पुन; दो ऋछते हुसंग हैं। बयालिस समय के अन्त में अन्हलवाड़ापट्टन में चंद को पुथ्वीराज का पत्र मिला कि इौरी अा रहा है और वह कुच पर कुच करता हुआ दिल्ली जा पहुँचा--- | थु कागद चंदह पढ्छि । अाभौ परि राजनेत ।। । कूच कूच मग चंद घरि ! पहुंच पर दानेस |५, इस कथन से शौरी-युद्ध बाला तेनाललव समय पूर्व कथा-सूत्र से सम्बन्धित हो गया है। पिता सोमेश्वर के वध के कारण पृथ्वीराज दिन-रात भीमदेव से बदला लेने की ज्वाला से धधकते रहते थे--- उर अड्डौ भीमंग नृय ! निचे चटक्कै थाइ । अगनि रूप प्रगटै उरह । सिंचै सत्रु बुझाइ ।।१, इस प्रकार प्रारम्भ करने के कारण तथा सम-बध और पृथ्वीराज की प्रतिज्ञा से परिचित होने के कारण यह घटना स्वतंत्र होते हुए भी अप्रासंगिक नहीं हो पाती ।। देवलोक की वात प्रारम्भ करने वाला समय तालिम तथा संयोगिता के जन्म, शिक्षा और पृथ्वीराज के प्रति अनुराग वर्णन करने वाले समय छियालिस और सैंतालिस परस्पर सम्बन्धित होते हुए भ; पूर्व और अपर समय के सम्बन्ध से विछिन्न हैं। भुमय अड़तालिस जयचन्द्र झा राजसूय यज्ञ अर पृथ्वीराज द्वारा इसका विध्वंस वर्णन करता है जिसके अंत में बाहुकाराय की पत्नी का विलाप करते हुए जयचन्द्र के पास जाना रन हारी पुक्कार पुनि ! गई पंग पंधाहि ।।। जय विध्वंसिय नप दुलह । पति जुग्गिनपुर प्राहि ||२७५, इस कथा को अगामी समय उन्चासे की बात से श्रासानी से जोड़ देता हैं और जयचन्द्र की पृथ्वीराज पर चढ़ाई का कारण स्पष्ट हो जाता है । पचासवें समय में पंरा और चौहान का युद्ध वर्णन होने के कारण वह पूर्व समय से संयुक्त दिखाई पड़ता है। दिल्ली-राज्य में जयचन्द्र की लेन द्वारा लूट-खसोट से प्रारम्भ होने के कारण ईद्धि फौज जयचंद फिरि । बर लभ्यौ चहुन । चंप ने उप्पर जाहि बर। रहै ठठुकिं समान ११,