पृष्ठ:Reva that prithiviraj raso - chandravardai.pdf/९३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
(८३)

________________

समय के दूसरे छन्द में ही बर्णन है कि पृथ्वीराज समुद्र शिखर गढ़ की राजकुमारी से परिणय करके शोरी शाह को बन्दी बनाये दिल्ली चल दिये, उनके कुछ अाहत सैनिक लौटते समय महोबा होकर जा निकले-- समुद्र सिपर रहे पनि नृप । करि सोहि लिये संग ।। अलि बहीर आई महुब । चढिब' रंग बहु रंग ।।२ | इस प्रकार देखते हैं कि महाराज पृथ्वीराज के जीवन के विविध प्रसंग अादि से लेकर अन्त तक क्रमानुसार रखे गये हैं जिससे कथा-सूत्रों को बाँधने वाली सबसे बड़ी विशेषता इस काव्य में रक्षित हो गई है। इन घटनाओं के जोड़ों में कहीं-कहीं शिथिलता प्रत्यक्ष है परन्तु पृथ्वीराज से अनवरत रूप से सम्बन्धित होने के कारण उसका बहुत कुछ परिहार हो जाता है। आदि से अवसान तक इस विशाल काव्य में उमड़ती हुई घटनाओं के प्रवाह में उत्तोत्तर जिज्ञासु पाठक को बहा ले जाने की पूरी क्षमता है। दूसरे दशावतार समय में भले ही उक्त कथाओं से परिचित होने के कारण उनकी संक्षिप्त पुनरावृत्ति में मन अधिक न रमे अन्यथा कहीं भी अटकने-भटकने के स्थल अवरोध नहीं डालते । कथा कहने की प्रणाली के कौशल को ही यह श्रेय है कि रासकार विविधता में एकता का संयुजन कर रमणीयता और आकर्षण की रक्षा कर सका है। (१२) साहित्यदर्पणकार ने इस शीर्षक के अन्तर्गत महाकाव्य में वर्णनीय जिन विषयों का उल्लेख किया है वे काव्य में वस्तु-बयान के अङ्ग हैं। यद्यपि पिछले काव्य-सौष्ठव की मीमांसा में वस्तु-वर्णन की चर्चा की जा चुकी है फिर भी अनेक विषयों के नवीन होने और महाकाव्य में उनके आवश्यक होने के कारण परीक्षा कर लेना उचित होई । म क्रमशः उन घर विचार करणे :सन्ध्या सो में सन्ध्या का वन बहुधी युद्ध-काल के अन्तर्गत श्राला है, जिसका आगमन युद्ध बंद करने या श में भी किसी विषम युद्ध की भूमिक; हेतु कवि करता है । | (अ) संसार में सन्ध्या अई....योगिनियों ने अपने शत्र भरे, शिव ने नर-मुण्डों की माला धारण की, चालुक्य के भय मुड़े नहीं, कन्हे ने हृदय में रौद इस धारण किया, दरबार में गजराजों के स्तिक तैर चले' । परिय सँझ जग मंझ } रिय केंकन रंकन धन ।। भरिय पञ्च जुन्थि । करेिय सिंच सीस माल इन् ।।