Acr VII.]
SA KUNTALS.
माढ । यह तो कह दूंगा । परंतु मेरा गला घोंटे विना मातलि
अपना संदेसा भुगता देता तो इस का क्या बिगड़ता ॥
मातलि । रथ पर चढ़ो महाराज ॥ (दुष्यन्त रथ पर चढ़ा और मातलि ने रप हांका)
स्थान साकाश के बादल'।
(इन्द्र का कार्य करके दुष्यन्त और मातलि रथ पर चढ़े आकाश से उतरते हुए)
दुष्यन्त । हे मातलि मैं ने इन्द्र की आज्ञा पाली । सो यह बात तौ
कुछ ऐसी बड़ी न थी जिस के लिये मुझे इतनी प्रतिष्ठा मिली ॥
मातलि । (हंसकर) दोनों को यही संकोच है। आप ने इन्द्र के साथ
इतना बड़ा उपकार किया है तो भी तुछ ही मानते हो । ऐसे ही
आप के करतब के सामने देवराज लज्जित हो रहा है ॥
दुष्य० । ऐसा मत कहो । इन्द्र ने मेरा बड़ा सत्कार किया कि मुझे
अपनी आधी गद्दी पर देवताओं के देखते जगह दी । और अपने पुत्र
जयन्त के सामने जिसे इस बड़ाई के मिलने की अभिलाषा थी मेरे
हृदय पर हरिचन्दन लगाकर गले में मन्दार' की माला डाली ॥
मात। हे राजा इन्द्र से आप किस किस सत्कार के योग्य नहीं हो।
स्वर्ग को दो ही ने दैत्यों के कण्टक से छुड़ाया है। एक तो आगे
नरसिंह के नखों ने और अब आप के तीक्षण बाणों ने ॥
दुष्य । हम को यह यश उन ही देवनायक की कृपा से मिला है ।
क्योंकि संसार में जब कोई बड़ा कार्य आज्ञाकारियों से बन पड़ता है
तो स्वामियों की बड़ाई का पुण्य समझा जाता है। क्या अरुण को
सामर्थ्य थी कि रात्रि के अन्धकार को दूर करता कदाचित सूर्य अपने
आगे उस को रथ पर आसन न देता ॥
पृष्ठ:Sakuntala in Hindi.pdf/१०३
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