Acr VII.]
BA KUNTALA.
नहीं जान पड़ता । परंतु मैं ने तपोवन में इस का बास देख ऋषिपुत्र
जाना था। (लड़के का हाथ हाथ में लेकर आप ही प्राप) आहा जब इस का हाथ
छूने से मुझे इतना सुख हुआ है तो जिस बड़भागी का यह बेटा है
उस को कितना हर्ष देता होगा ।
टू तप० । (दोनों की ओर देखकर बड़े अचंभे की बात है।
दुय । तुम को क्यों अचंभा हुआ ॥
दू' तप० । यह अचंभा है कि इस बालक का तुम्हारा कुछ
संबन्ध नहीं है तो भी तुम्हारी इस की उनहार बहुत मिलती है।
और दूसरे यह अचंभे की बात है कि यह तुम को आगे से नहीं
जानता था और अभी इस की बुद्धि भी बालक है तो भी तुम्हारी
बात इस ने क्यों तुरंत मान ली।
दुष्य । (लड़के को गोद में उठाकर) हे तपस्विनी जो यह ऋषिकुमार नहीं
है तो किस का वंश है।
दू० तप० । यह पुरुवंशी है ॥
दुप० । (शाप ही आप) इसी से मेरी इस की उनहार मिलती है।
(उस को गोद से उतारकर) (प्रगट) पुरुवंशियों में यह रीति तो निश्चय है कि
युवावस्था भर" रनवास में रहकर पृथी की रक्षा और पालन करते
हैं। फिर जब वृद्धापन आता है वानप्रस्थाश्रम लेकर जितेन्द्री तपस्वियों
के आश्रम में वृक्षों के नीचे कुटी बनाकर रहते हैं । परंतु मुझे
आश्चर्य यह है कि इस बालक के देवता के से चरित्र हैं। यह मनुष्य
का वीर्य क्योंकर होगा।
टू तप० । हे परदेसी तेरा सब संदेह तब मिट जायगा जब तू जान
लेगा कि इस बालक की मा एक अप्सरा की बेटी है।
दुष्यः । (प्राय ही भाप) यह तो बड़े आनन्द की बात सुनाई। इस से कुछ
और आसा बढ़ी । (प्रगट) इस की माता का पाणिग्रहण किस राजर्षि
ने किया है ॥
पृष्ठ:Sakuntala in Hindi.pdf/१०९
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