SAKUNTAL.
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दष्य । एसे शभ समय में एक संग" चलना बहुत उत्तम है। ऐसा
सभी करते आए हैं। चलो। विलम्ब मत करो ॥ (मय आगे को घट्टे)
___ स्थान । सिंहासन पर बैठे हुए वश्यप सौर अदिति बातें करते हुए दिखाई दिये ।।
कश्यप । (राजा की प्रोर देखकर) हे दक्षासुता तेरे पुत्र की सेना का अग्र-
गामी मर्त्यलोक का राजा दुष्यन्त यही है। इसी के धनुष का प्रताप
है कि इन्द्र का बज केवल शोभा मात्र रह गया है ॥
अदिति । इस के लक्षण बड़े राजाओं के से दिखाई देते हैं ।
मातलि । (दुष्पन्त मे) हे राजा द्वादश आदित्यों के माता पिता आप
की ओर प्यार की दृष्टि से ऐसे देख रहे हैं जैसे कोई अपने पुत्र को
देखता है। आप निकट चलो ॥
दुष्य० । क्या ये ही दक्ष की पुत्री और मरीचि के पुत्र हैं । ये
ही ब्रह्मा के पौत्र पौत्री हैं जिन को उस ने सृष्टि के आदि में
जन्म दिया था और बारह आदित्यों के पितर कहलाते हैं । क्या
ये वे ही हैं जिन से त्रिभुवनधनी इन्द्र और बावन अवतार"
उत्पन्न हुए ।
मातलि । हां ये ही हैं । (टुप्पन्न समेत साष्टाङ्गदण्डतव की) हे महात्माओ राजा
दुष्यन्त जो अभी तुम्हारे पुत्र वासव की आज्ञा पूरी करके आया है
प्रणाम करता है॥
कश्यप । अखण्ड राज्य रहं ॥
अदिति । तुम रण में अजित हो ।
शकु । महाराज में भी आप के चरणों में बालक समेत प्रणाम
करती हूं।
कश्यप । हे पुत्री तेरा स्वामी इन्द्र के समान और पुत्र जयन्त के
तल्य हो । इस से उत्तम और क्या आशीवाद दूं कि तू पुलोमन
की पुत्री शची के सदृश हो ॥
अदिति। हे पुत्री तू सदा सौभाग्यवती रहे। और यह बालक दीर्घायु
पृष्ठ:Sakuntala in Hindi.pdf/११४
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