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ACT VII.]
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SAKUNTALTÀ.


अदिति । अब शकुन्तला ने फिर अच्छे दिन देखे। इस लिये कन्व जी को भी यह वृत्तान्त सुनाना चाहिये । और इस की माता मेनका यहीं है। वह तो सब जानती ही है ।।

शकु० । (आप ही आप)इस भगवती ने तो मेरे ही मन की कही ।।

कश्यप । अपने तप के बल से कन्व जी सब वृत्तान्त जानते होंगे। परंतु यह मङ्गल की बात है।उन को सुनानी चाहिये ॥ दुष्य० इसी से मुनि ने मुझ पर क्रोध न किया ॥

कश्यप । (सोचकर)समाचार हमी कन्व को पहुंचावेंगे। कोई है ॥

( एक चेला आया )

चेला । महात्मा क्या आज्ञा है ॥

कश्यप । हे गालव तुम अभी आकाशमार्ग होकर¹०² कन्व के पास जाओ और मेरी ओर से यह शुभ समाचार कह दो कि दुवासा का शाप मिटने से आज दुयन्त ने पुत्रवती शकुन्तला को पहचानकर अङ्गीकार कर दिया ।।

चेला । जो आज्ञा ॥ (गया)

कश्यप । अब पुत्र तुम अपने स्त्री वालक समेत इन्द्र के रथ पर चढ़कर आनन्द से अपनी राजधानी को सिधारो ॥

दुष्य० । जो आज्ञा ॥

कश्यप । हम आशीवाद देते हैं कि इन्द्र तुम्हारे राज्य में अच्छी वर्षा करे।¹० ³और तुम यज्ञ करके इन्द्र को अनुकूल रक्खो। इस भांति तुम्हारा परस्पर उपकार होने से दोनों लोक के वासी युगानयुग¹०5 सुख पावेंगे ॥

दुष्य° । हे महात्मा जहां तक हो सकेगा० मैं इस मुख के निमित्त सब उपाय करूंगा ॥ कश । अब और क्या आशीर्वाद दें।

दुष्य० । जो आप ने कृपा की है इस से अधिक और आशीर्वाद