पृष्ठ:Sakuntala in Hindi.pdf/४३

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(दोनों सखियों समेत³² शकुन्तला दिखाई दी)

दोनों सखी। (पंखा झलती हुई) हे सखी शकुन्तला हम कमल के पत्तों से पत्तोंरती हैं। सो तेरे शरीर को³³ लगती है या नहीं॥


शकुन्तला । (अकुलाकर) सखियो तुम क्यों मेरे लिये दुख सहती हो ॥ दोनों सखी एक दूसरो की ओर देखती हुई)


दुष्य० । (आप ही आप) है इस की तो यह दशा हो रही है। क्या कारण इस ज्वर का है । धूप लगी है या जैसा मैं समझा हू³⁴। (सोच में डूबा हुआ) इस समय मेरे मन में कैसे कैसे संदेह उठते हैं। प्यारी के हृदय में उसीर का लेप लगा है और हाथों में कमलनाल का कङ्कण इतना ढीला हो गया है । परंतु इस दुर्बलता पर भी शरीर कैसा रमणीय है³5। रतिपति और ग्रहपति इन दोनों की आंच समान है परंतु ग्रीष्म ऋतु के भानु का संताप तरुण स्त्रियों को इतना नहीं सता- तरुण॥


प्रियंवदा । (होले अनमूपा से) हे अनसूया ते ने भी देखा था या नहीं कि जब शकुन्तला की दृष्टि उस राजर्षि पर पड़ी तब कैसी ठगी सी³6 हो गई थी। कहीं वही रोग तो इसे नहीं है³7 ॥


अनसूया । (होले प्रियंवदा में) मेरे मन में भी यही भ्यासती है। चाहे सो हो इस से पूछना तौ चाहिये³8 । (प्रगट) हे सखी शकुन्तला मैं यह पूंछती हूं तेरी यह दशा क्योंकर हुई है ।


शकु० । (फूलों की सेन से घोड़ी सी उठकर) सहेलियो तुम ही बताओ तुम इस का कारण क्या समझी हो ॥


अन० । सखी हम तेरे हृदय की³9 तो क्या जानें। परंतु जैसी दशा लगन लगे⁴0 मनुष्यों की कहानियों में सुनी है वैसी तेरी⁴¹ दिखाई देती है। तू ही कह दे तुझे क्या रोग है क्योंकि जब तक मरम न जाने वैया औषधि भी नहीं कर सकता है ।


दुष्य० । (हौले आप ही प्राप) मेरे मन में भी यही थी⁴²।।

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