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ACT IV.]
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SAKUNTALA.


है तेरी रक्षा करेगी68 । (शकुन्तला ने परिक्रमा दौअब पुत्री तू शुभ घड़ी में बिदा हो । (चारों शोर देखकर) संगजानेवाले मिश्न कहां हैं ॥

(शारिव और शारहत पाए)

दो० भाई । मुनि जी हम ये हैं। कन्व । पुत्र शाङ्गरव अपनी बहन को गैल बताओ। सारथी । आओ भगवती । इधर आओ ॥ (सय चले)

कन्व० । हे तपोवन के वृक्षो जिस शकुन्तला ने तुम्हारे विना सीचे कभी जल भी नहीं पिया और जिसे यद्यपि पुष्पपत्र के गहने बनाने का चाव था परंतु थार के मारे तुम्हारे फूल पत्ते कभी न तोड़े और बड़ा आनन्द सदा तुम्हारे मौरने के समय माना इस को तुम पति के घर जाने की आज्ञा दो । (कोयल भोली) यह देखो वनदेवियों ने आज्ञा दी ॥

अाकाशवाणीशकुन्तला को यह यात्रा मङ्गलकारी हो। और उस के सुख के निमित मार्ग में पवन फूलों का पराग बरसावे । कमलसंयुक्त निर्मल जल के ताल उस को पर्यटन में सुख दें। और वृक्षों की सघन छाया सूर्य के तेज से रक्षा करे ॥

सारथी । यह आशीवाद किस ने दिया कोकिला ने या तपस्वियों की सहवासिनी वनदेवियों ने ॥

गौ० । हे पुची तपस्वियों की हितकारी वनदेवी तुझे आशीवाद देती हैं। तू भी इन को प्रणाम कर ॥ (शकुन्तला फिरकर नमस्कार किया)

शकू० । (प्रियंवदा से हौले हौले) हे प्रियंवदा आर्यपुत्र से फिर भेट होने का तो मुझे बड़ा उत्साह है। परंतु इस वन को जिस में इतनी बड़ी हुई हूं छोड़ते आगे को पांव नहीं पड़ते हैं॥

प्रि०। अकेली" तुझी को शोक नहीं है। ज्यों ज्यों तेरे बिदा होने का समय निकट आता है तेरे विरह से वन में बिथा सी" छायी जाती है। देख हरिणियों ने घास चरना छोड़ दिया है। मोर नाचना" भूल