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[ACT V
SAKUNTALA.

दो० सखी । (वियोग से शकुन्तला की ओर देखकर )अब तो सखी वृक्षों की ओट हुई 10 ॥

कन्व । (सांस लेकर) बेटियों अब तुम्हारी सखी गई । तुम इस सोच को त्यागकर हमारे साथ आओ।

दो० सखी। पिता शकुन्तला बिना तपोवन सूना लगता है ॥ (सब लौटे)

कन्व। सत्य है तुम को ऐसा ही दिखाई देता होगा¹०० । (विचार करते हुए चले)शकुन्तला को बिदा करके आज मैं सुचित हुआ । बेटी किसी दिन पराए ही घर का धन होती है । आज मेरा चित्त ऐसा प्रसन्न हुआ है मानो किसी की धरोहर दे दी।

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अङ्क ५

स्थान राजभवन ।।

(एक बूढ़ा द्वारपाल स्वास भरता हुला आया)

द्वारपाल । हाय बुढ़ापे ने मेरी क्या दशा कर दी है। यही छड़ी जिस मे मैं आगे रनवास में द्वारपाली का काम भुगताता था अब बुढ़ापे में मेरे चलने का सहारा बनी है। (बाहर से शब्द हुला कि राजा से कहो कुछ अवश्य काम है) मुझे कुछ समाचार राजा से भुगताने हैं । सो जव रनवास को जांयगे तब कहूंगा। परंतु इस में विलम्ब न होना चाहिये । (हौले आगे को चला)मैं कहने को था । हां यह कि कन्व के चेले आशीर्वाद देने आए । हे दैव बुढ़ापा भी मनुष्य को कैसी आपदा है। इस अवस्था में मनुष्य की बुद्धि बुझते दीपक के समान कभी मन्द कभी चेतन हो जाती है। (इधर उधर फिरकर देखकर) महाराज वे बैठे हैं । अभी अपनी प्रजा को संतान के सदृश समाधान करके एकान्त में गये हैं जैसे गजराज दिन में सब हाथियों को इधर उधर भेजकर आप शीतल छांह में विश्राम लेने जाता है। राजा अभी धर्मासन से उठे हैं । इस लिये .