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Acry.]
SAKUNTAI..
शकु । यह विधि ने अपना बल दिखाया है। परंतु अभी एक पता
और भी दूंगी॥
दुष्य० । सो भी कहो॥
शकु० । उस दिन की सुध है या नहीं जब आप ने माध्वीकुञ्ज में
कमल के पत्ते से जल अपने हाथ में लिया ।
दुष्य० । तब क्या हुआ ॥
शकु । उसी छिन एक मृगछौना जिस को मैं ने पुत्र की भांति
पाला था आ गया । आप ने बड़े प्यार से कहा कि आ बच्चे पहले
तू ही पानी पी ले । उस ने तुम्हें विदेसी जान तुम्हारे हाथ से जल न
पिया। मेरे हाथ से पी लिया। तब तुम ने हंसकर कहा कि सब
कोई अपने ही संघाती को पत्याता है । तुम दोनों एक ही वन में
वासी हो और एकप्ते मनोहर हो ॥
दुष्य० । चतुर स्त्रियों के मधुर वचनों ही से तो कामी मनुष्य के मन
डिगते हैं।
गौतमी । बस राजा । ऐसे कटोर वचन कहने योग्य नहीं है। यह
कन्या तपोवन में पली है। यह दुखिया छल क्या जाने ॥
दुष्य० । हे तपस्विनी विना सिखाए भी स्त्रीजाति की चतुराई
पुरुषों से अधिक होती है। सो यह बात केवल मनुष्यों ही में नहीं
है सब जीव जन्तु में है । और कदाचित स्त्री अच्छी सिखाई जांय तौ
न जानिये क्या करें । देखो कोयल अपने अण्डे बच्चे" दूसरे पक्षियों
से जिन से उस का कुछ संबन्ध नहीं है पलवाती है ॥
शकु । (क्रोध करके) हे निर्लज्ज तू अपना सा कुटिल हृदय सब का
जानता है । तुझ सा पाखण्डी और कपटी राजा न कोई पृथी पै
हुआ है न आगे होगा । तें ने धर्म के भेष में कपट ऐसे दुराया है
मानो गहरे कूए का मुख घास फूस से ढका है ॥
दुष्यः । (आप ही आप) इस का कोप मेरे मन में संदेह उपजाता है कि
पृष्ठ:Sakuntala in Hindi.pdf/७७
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