SAKUNTALA.
[ACT T.
शारहत । सत्य है। परंतु तू ऐसा पुरुष है कि अधर्म और अकीर्ति
से डरता है तो भी अपनी विवाहिता को छोड़ते नहीं लजाता।
और मिस यह बनाया है कि प्रजोयकार" के कामों में अपने वचन
को भूल गया है।
दुष्य। (अपने पुरोहित में न जान में ही भूल गया हूं या यही अट
कहती है । हे पुरोहित तुम कहो दोनों पापों में से कौन सा बड़ा
है अपनी विवाहिता स्त्री को त्यागना अथवा पराई को ग्रहण
करना॥
पुरोहित । (बहुत सोचकर महाराज इन दोनों के बीच में एक तीसरा
उपाय और है । सो करना उचित है अर्थात यह कि जब तक इस के
पुत्र का जन्म" हो तब तक मेरे घर में निवास करने दो ॥
दुष्य' । यह क्यों॥
पुरो० । अच्छे अच्छे ज्योतिषियों ने आगे ही कह रखा है कि आप
के चक्रवर्ती पुत्र होगा। सो कदाचित इस मुनिकन्या के ऐसा ही
पुत्र जन्मे और उस के लक्षण चक्रवर्ती" के से पाए जांय तो आप इस
को आदरपूर्वक रनवास में लेना। नहीं तो यह अपने पिता के आश्रम
को जायगी ॥
दुय० । अच्छा । जो तुम्हारी इच्छा हो" ॥
पुरो । (शकुन्तला से) आ पुत्री। मेरे पीछे चली आ ॥
शकु । हे धरती तू मुझे ठौर दे । मैं समा जाऊं ॥
(रोती हुई पुरोहित के पीछे पीछे 10 गई । और तपस्सी पोर गौतनी दूसरी ओर गये । शकुन्तला को
जाती देखकर राजा खल्ला सोचने लगा। परंतु शाप के बस फिर भी मुध न पाई)
(नेपथ्य में) अहा बड़े आश्चर्य की बात हुई।
दुय । (कान लगाकर) क्या हुआ ॥
फिर साया)
पुरो । महाराज बड़ा अचम्भा हुआ। जब यहां से निकलकर कन्व
पृष्ठ:Sakuntala in Hindi.pdf/८०
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