ACT Y!.]
SAKUNTALA.
कुम्भि' । मुझ निरपराधी को क्यों मारना चाहिये ।
टू पियादा । देिखकर कोतवाल जी तौ वे" आते हैं । राजा ने
भला" तुरंत ही निबेड़ा कर दिया । अव कुम्भिलक तू या तौ छूट ही
जायगा नहीं तो कुत्तों गिद्धों का भक्षण बनेगा ॥
(कोतवाल फिर आया)
कोत । धीमर को . . . . ॥
कुम्भिः । (घघराकर) हाय । अब मैं मरा ॥
कोत. । . . . . छोड़ दो । महाराज कहते हैं कि अंगूठी का वृत्तान्त
हम जानते हैं। धीमर का कुछ अपराध नहीं है । इसे तुरंत छोड़ दो ॥
टू पियादा । जो आज्ञा" । आज यह चोर यम के घर से बच
आया ॥ (छोड़ दिया)
कुम्भिः । (हाथ जोड़कर) आप ही ने मेरे प्राण बचाए हैं ।
कोत । अरे जा । तरे भाग्य खुल गये । राजा की आज्ञा है कि
अंगूटी का पूरा मोल तुझे मिले । सो यह ले ॥ (घेलो धोमर को दो)
कुम्भि० । (हाथ जोड़कर) मैं इस समय अपने तन में फूला नहीं
समाता इं
प० पियादा । फूला क्यों समायगा। तू सूली से उतरकर हाथी पर
चढ़ा है ॥
टू पियादा । राजा के प्रसन्न होने का क्या कारण है । अंगूठी तो
कुछ ऐसी बड़ी वस्तु नहीं है" ॥ |
कोत° । प्रसन्न होने का कुछ" यह भी कारण है कि अंगूठी बड़े मोल
की है । परंतु मुख्य हेतु मुझे यह जान पड़ा कि अंगूठी को देखकर
राजा को अपने किसी प्यारे की सुध आ गई । क्योंकि यद्यपि राजा
का स्वभाव गम्भीर है तो भी जिस समय अंगूठी देखी विकल होकर
मूर्छा आ गई॥
टू पियादा । तो आप ने राजा को बड़ा प्रसन्न किया ॥
)
पृष्ठ:Sakuntala in Hindi.pdf/८३
Jump to navigation
Jump to search
यह पृष्ठ शोधित नही है
