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ACT VI.]
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SAKUNTALA.

मिश्र० । आप ही आप) जो किसी और के हाथ पड़ती तो निस्संदेह इस मुदरी का भाग्य खोटा गिना जाता ॥

माढ० । कृपा करके यह तो कहो कि यह अंगूठी शकुन्तला की उंगली तक क्योंकर पहुंची ॥

मिश्र० । (आप ही आप) में भी यही सुना चाहती थी॥

दुष्य० । सुनो। जब मैं तपोवन से अपने नगर को चलने लगा तब प्यारी ने आंखें भरके" कहा कि आर्यपुत्र फिर कब सुध लोगे ।

माढ० । भला फिर ॥

दुष्य० । तब यह अंगूटी उस की उंगली में पहनाकर मैं ने उत्तर दिया कि इस के अक्षरों को तू एक एक कर" प्रतिदिन गिनियो। जिस दिन पिछला अक्षर गिनती में आवे उसी दिन जानना" कि आज रनवास से कोई लिवाने आवेगा। परंतु हाय मुझ निर्दई को यह सुध न रही ॥

मिश्र० । (आप ही आप) इन के वियोग और संयोग में तीन दिन का अन्तर बहुत अच्छा टहरा था। परंतु ब्रह्मा ने बिगाड़ दिया ।

माढ० । फिर वह मुदरी मछली के पेट में कैसे गई ।

दुष्य० । जिस समय प्यारी ने सचीतीर्थ आचमन को जल लिया तब जल में गिर पड़ी होगी स चीतीर्थ ठीक है ॥

मिश्र० । आप हो आप)आहा यही बात है कि राजा ने अधर्म से डरकर अपने विवाह का संदेह किया । परंतु आश्चर्य है कि फिर उसे मुदरी से क्योंकर सुध हुई ॥

दुष्य० । मैं इस मुदरी को कुछ बुरा" कहा चाहता हूं ॥

माढ० । (आप ही आप) राजा उन्मत्त हो गया है।(प्रगढ) सो ई मैं भी अपनी लाठी से कहा चाहता हूं ॥

दुष्य० । क्यों माढव्य । तुम लाठी से क्यों बुरा कहा चाहते हो ॥