पृष्ठ:Satya Ke Prayog - Mahatma Gandhi.pdf/१३५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
११७
अध्याय ९ : और कष्ट

और कष्ट

चार्ल्सटाउन ट्रेन सुबह पहुंचती हैं। चार्ल्सटाउनसे जोहान्सबर्गतक पहुंचनेके लिए उस समय ट्रेन न थी। घोड़ागाड़ी थी और बीचमें एक रात स्टैंडरटनमें रहना पड़ता था। मेरे पास घोड़ागाड़ीका टिकट था। मेरे एक दिन पिछड़ जानेसे यह टिकट रद्द न होता था। फिर अब्दुल्ला सेठने चार्ल्सटाउनके घोड़ागाड़ीवालेको तार भी दे दिया था। पर उसे तो बहाना बनाना था। इसलिए मुझे एक अनजान आदमी समझकर उसने कहा—'तुम्हारा टिकट रद्द हो गया है।' मैंने उचित उत्तर दिया। यह कहनेका कि टिकट रद्द हो गया है, कारण तो और ही था। मुसाफिर सब घोड़ागाड़ीके अंदर बैठते हैं। पर मैं समझा जाता था 'कुली'; और अनजान मालूम होता था, इसलिए घोड़ागाड़ीवालेकी यह नीयत थी कि मुझे गोरे मुसाफिरोंके साथ न बैठाना पड़े तो अच्छा। घोड़ागाड़ीमें बाहरकी तरफ, अर्थात् हांकनेवालेके पास, दायें-बायें दो बैठकें थीं। उनमें से एक बैठक पर घोड़ागाड़ी कंपनीका एक अफसर गोरा बैठता। वह अंदर बैठा और मुझे हांकनेवालेके पास बैठाया। मैं समझ गया कि यह बिलकुल अन्याय है, अपमान है। परंतु मैंने इसे पी जाना उचित समझा। मैं जबरदस्ती तो अंदर बैठ नहीं सकता था। यदि झगड़ा छेड़ लूं तो घोड़ागाड़ी चल दे और फिर मुझे एक दिन देर हो, और दूसरे दिनका हाल परमात्मा ही जाने। इसलिए मैंने समझदारी से काम लिया और बाहर ही बैठ गया। मनमें तो बड़ा खीझ रहा था।

कोई तीन बजे घोड़ागाड़ी पारडीकोप पहुंची। उस वक्त गोरे अफसरको मेरी जगह बैठनेकी इच्छा हुई। उसे सिगरेट पीना था। शायद खुली हवा भी खानी हो। सो उसने एक मैला-सा बोरा हांकनेवालेके पाससे लिया और पैर रखनेके तख्तेपर बिछाकर मुझसे कहा—"सामी, तू यहां बैठ, मैं हांकनेवालेके पास बैठूंगा।" इस अपमानको सहन करना मेरे सामर्थ्यके बाहर था, इसलिए मैंने डरते-डरते उससे कहा—"तुमने मुझे जो यहां बैठाया, सो इस अपमानको तो मैंने सहन कर लिया। मेरी जगह तो थी अंदर; पर तुमने अंदर बैठ कर मुझे