दी गई हैं, उनसे मुझे लाभ न हुआ; क्योंकि यह मेरी नास्तिकताका युग न था; और जो युक्तियां ईसामसीहके अद्वितीय अवतारके संबंधमें अथवा उसके मनुष्य और ईश्वरके बीच संधि-कर्ता होनेके विषयमें दी गई थीं, उनकी भी छाप मेरे दिलपर न पड़ी।
पर कोट्स पीछे हटनेवाले आदमी न थे। उनके स्नेहकी सीमा न थी। उन्होंने मेरे गलेमें वैष्णव-कंठी देखी। उन्हें यह वहम मालूम हुआ, और देखकर दु:ख हुआ। "यह अंध-विश्वास तुम जैसों को शोभा नहीं देता। लाओ तोड़ दूं।
"यह कंठी तोड़ी नहीं जा सकती। माताजीकी प्रसादी है।"
"पर तुम्हारा इसपर विश्वास है?
"मैं इसका गूढ़ार्थ नहीं जानता। यह भी नहीं भासित होता कि यदि इसे न पहनूं तो कोई अनिष्ट हो जायगा। परंतु जो माल मुझे माताजीने प्रेमपूर्वक पहनाई है, जिसे पहनानेमें उसने मेरा श्रेय माना, उसे मैं बिना प्रयोजन नहीं निकाल सकता। समय पाकर जीर्ण होकर जब यह अपने आप टूट जायगी तब दूसरी मंगाकर पहननेका लोभ मुझे न रहेगा; पर इसे नहीं तोड़ सकता।"
कोट्स मेरी इस दलीलकी कद्र न कर सके; क्योंकि उन्हें तो मेरे धर्मके प्रति ही अनास्था थी। वह तो मुझे अज्ञान-कूपसे उबारनेकी आशा रखते थे। वह मुझे इतना बताना चाहते थे कि अन्य धर्मोंमें थोड़ा-बहुत सत्यांश भले ही हो; परंतु पूर्ण सत्य-रूप ईसाई-धर्मको स्वीकार किये बिना मोक्ष नहीं मिल सकता, और ईसामसीहकी मध्यस्थताके बिना पाप-प्रक्षालन नहीं हो सकता, तथा सारे पुण्य कर्म निरर्थक हैं। कोट्सने जिस प्रकार पुस्तकोंसे परिचय कराया उसी प्रकार उन ईसाइयोंसे भी कराया, जिन्हें वह कट्टर समझते थे। इनमें एक प्लीमथ ब्रदर्सका भी परिवार था।
'प्लीमथ ब्रदरन्' नामक एक ईसाई-संप्रदाय है। कोट्सके कराये बहुतेरे परिचय मुझे अच्छे मालूम हुए। ऐसा जान पड़ा कि वे लोग ईश्वर-भीरू थे; परंतु इस परिवारवालोंने मेरे सामने यह दलील पेश की—"हमारे धर्मकी खूबी ही तुम नहीं समझ सकते। तुम्हारी बातोंसे हम देखते हैं कि तुम हमेशा बात-बातमें अपनी भूलोंका विचार करते हो, हमेशा उन्हें सुधारना पड़ता है, न सुधरें तो उनके लिए प्रायश्चित्त करना पड़ता है। इस क्रियाकांडसे तुम्हें मुक्ति