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अध्याय १२ : भारतीयोंसे परिचय


तो बाइबिल तथा उसके रूढ़ अर्थके संबंधमें थीं।

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भारतीयोंसे परिचय

ईसाइयोंके परिचयोंके संबंधमें और अधिक लिखनेके पहले उन्हीं दिनों हुए अन्य अनुभवोंका वर्णन करना आवश्यक है।

नेटालमें जो स्थान दादा अब्दुल्लाका था, वही प्रिटोरियामें सेठ तैयब हाजी खानमुहम्मद का था। उनके बिना वहां एक भी सार्वजनिक काम नहीं हो सकता था। उनसे मैंने पहले ही सप्ताहमें परिचय कर लिया। प्रिटोरियाके प्रत्येक भारतीयके संपर्कमें आनेका अपना विचार मैंने उनपर प्रकट किया। भारतीयोंकी स्थितिका निरीक्षण करनेकी अपनी इच्छा उनपर प्रदर्शित करके इस कार्यमें उनकी सहायता मांगी। उन्होंने खुशीसे सहायता देना स्वीकार किया।

पहला काम जो मैंने किया, वह था समस्त भारतीयोंकी एक सभा करना, जिसमें उनके सामने वहांकी स्थितिका चित्र रक्खा जाय। सेठ हाजी मुहम्मद हाजी जुसबके यहां, जिनके नाम मुझे परिचय-पत्र मिला था, सभा की गई। उनमें प्रधानतः मेमन व्यापारी शरीक हुए थे। कुछ हिंदू भी थे। प्रिटोरियामें हिंदुओंकी आबादी बहुत कम थी।

जीवनमें मेरा यह पहला भाषण था। मैंने तैयारी ठीक की थी। मुझे सत्य पर बोलना था। व्यापारियोंके मुंहसे मैं सुनता आया था कि व्यापारमें सच्चाईसे काम नहीं चल सकता। उस समय मैं यह बात नही मानता था। आज भी नहीं मानता हूं। व्यापार और सत्य दोनों एकसाथ नहीं चल सकते, ऐसा कहनेवाले व्यापारी मित्र आज भी मौजूद हैं। वे व्यापारको व्यवहार कहते हैं, सत्यको धर्म कहते हैं और युक्ति पेश करते हैं कि व्यवहार एक चीज हैं और धर्म दूसरी। व्यवहारमें शुद्ध सत्यसे काम नहीं चल सकता। वे मानते हैं कि उसमें तो यथाशक्ति ही सत्य बोला और बरता जा सकता है। मैंने अपने भाषणमें इस बातका प्रबल विरोध किया और व्यापारियोंको उनके दुहरे कर्त्तव्यका स्मरण दिलाया। मैंने कहा—"विदेशमें आने के कारण आपकी जवाबदेही देशसे अधिक