पृष्ठ:Satya Ke Prayog - Mahatma Gandhi.pdf/१४९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
१३१
अध्याय १३ : कुलीपनका अनुभव


सप्ताह करनेका निश्चय हुआ।

न्यूनाधिक नियमित रूपमें यह सभा होती तथा विचार-विनिमय होता। इसके फलस्वरूप प्रिटोरियामें शायद ही कोई ऐसा भारतवासी होगा, जिसे मैं पहचानता न होऊं या जिसकी स्थित से वाकिफ न होऊं। भारतीयोंकी स्थितिकी ऐसी जानकारी प्राप्त कर लेनेका परिणाम यह हुआ कि मुझे प्रिटोरिया-स्थित ब्रिटिश एजेंटसे परिचय करनेकी इच्छा हुई। मैं मि॰ जेकोब्स डिवेटसे मिला। उनके मनोभाव हिंदुस्तानियोंकी ओर थे। पर उनकी पहुंच कम थी। फिर भी उन्होंने भरसक सहायता करनेका आश्वासन दिया और कहा—"जब जरूरत हो तो मिल लिया करो।" रेलवे-अधिकारियोंसे लिखा-पढ़ी की और उन्हें दिखाया कि उन्हींके कायदोंके अनुसार हिंदुस्तानियोंकी यात्रा रोक-टोक नहीं हो सकती। उसके उत्तरमें यह पत्र मिला कि साफ-सुथरे और अच्छे कपड़े पहननेवाले भारतवासियोंको ऊपर दरजेके टिकट दिये जायंगे। इससे पूरी सुविधा तो न हुई; क्योंकि अच्छे कपड़ोंका निर्णय तो आखिर स्टेशनमास्टर ही करता न?

ब्रिटिश एजेंटने मुझे हिंदुस्तानियोंसे संबंध रखनेवाली चिट्ठियां दिखाई। तैयब सेठने भी ऐसे पत्र दिये। उनसे मैंने जाना कि आरेंज फ्री स्टेटसे हिंदुस्तानियोंके पैर किस प्रकार निर्दयतासे उखाड़े गये। संक्षेपमें कहूं तो प्रिटोरियामें मैं भारतवासियोंकी आर्थिक, सामाजिक और राजनैतिक स्थितिका गहरा अध्ययन कर सका। मुझे इस समय यह बिलकुल पता न था कि यह अध्ययन आगे चलकर बड़ा काम आवेगा; क्योंकि मैं तो एक साल बाद अथवा मामला जल्दी तय हो जाय तो उसके पहले देश चला जानेवाला था।

पर ईश्वरने कुछ और ही सोचा था।

१३
कुलीपनका अनुभव

ट्रांसवाल तथा आरेंज फ्री स्टेटके भारतीयोंकी दशाका पूरा चित्र देनेका यह स्थान नहीं। उनके लिए पाठकोंको 'दक्षिण अफ्रिकाके सत्याग्रहका इतिहास' पढ़ना चाहिए; परंतु उसकी रूप-रेखा यहां दे देना आवश्यक है।