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पृष्ठ:Satya Ke Prayog - Mahatma Gandhi.pdf/१५१

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अध्याय १३ : कुलीपन का अनुभव

देनेके बदले अपनी तरफसे एक पत्र दे दिया। उसका आशय यह था कि मैं कहीं भी किसी समय चला जाऊं तो पुलिस मुझे रोक-टोक न करे। हमेशा मैं इस पत्रको अपने साथ रखता। उसका उपयोग तो किसी दिन भी न करना पड़ा; पर इसे एक दैव-योग ही समझना चाहिए।

डा॰ क्राउजे ने मुझे अपने घर चलने का निमंत्रण दिया। हम दोनोंमें खासी मित्रता-सी हो गई। कभी-कभी मैं उनके घर जाने लगा। उनके द्वारा उनके अधिक प्रख्यात भाईसे मेरा परिचय हुआ। यह जोहांसबर्गमें पब्लिक प्रासीक्यूटर थे। उनपर बोअर-युद्धके समय अंग्रेज अधिकारीका खून करनेकी साज़िशका अभियोग लगाया गया था और उन्हें सात साल कैदकी सजा भी मिली थी। बेंचरोंने उनकी सनद भी छीन ली थी। लड़ाई खतम होनेके बाद, डा॰ क्राउजे जेलसे छूटे, और फिर सम्मान-सहित ट्रांसवालकी अदालतमें वकालत करने लगे। इन परिचयोंसे मुझे बादको सार्वजनिक कार्योंमें खासा लाभ मिला और मेरा कितना ही सार्वजनिक काम बहुत सुगम हो गया।

फुटपाथ पर चलनेका प्रश्न जरा मेरे लिए गंभीर परिणामवाला साबित हुआ। मैं हमेशा प्रेसीडेंट-स्ट्रीटमें होकर एक खुले मैदानमें घूमने जाता। इस मुहल्लेमें प्रेसीडेंट कूगरका घर था। इस घरमें आडंबरका नाम-निशान न था। उसके आस-पास कंपाउंड तक न था। दूसरे पड़ौसी घरोंमें और इसमें कुछ फर्क न मालूम देता था। कितने ही लखपतियोंके घर, प्रिटोरियामें, इस घरसे भारी आलीशान और चहारदीवारी वाले थे। प्रेसीडेंटकी सादगी प्रख्यात थी। यह घर किसी राज्याधिकारीका है, इसका अंदाज सिर्फ उस संतरीको देखकर हो सकता था, जो उसके सामने टहलता रहता। मैं इस संतरीके नजदीकसे ही रोज निकला करता, परंतु संतरी मुझे रोक-टोक नहीं करता था। उनकी बदली होती रहती। एक बार एक संतरीने, बिना चिताये, बिना यह कहे कि फुटपाथसे उतर जाओ, मुझे धक्का मार दिया, लात जमा दी और फुटपाथसे उतार दिया। मैं तो भौंचक्का रह गया। ज्योंही मैं संतरीसे लात जमानेका कारण पूछता हूं कि कोट्सने, जो घोड़ेपर सवार होकर उस समय उसी रास्तेसे जा रहे थे, आकर कहा—

"गांधी, मैंने यह सब देख लिया है। तुम यदि मुकदमा चलाना चाहो तो मैं गवाही दूंगा। मुझे बहुत अफसोस होता है कि तुमपर इस प्रकारका हमला