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अध्याय १५ : धार्मिक मंथन


हमें नुकाम करना पड़ा था; क्योंकि मि बैंकर का संघ रविवार को सफर मैं करता था ’ और बीच में रविवार पड़ गया था । बीच में तथा स्टेशन पर मुझे होटलवाले होटल में ठहरने से तथा चख-चख होने के बाद ठहरने पर भी भोजनालय में भोजन करने देने से इनकार कर दिया; पर मि० बैंकर आसानी से हार मानने वाले न थे । वह होटल में ठहरनेवालों के हकपर अड़े रहे; परंतु मैने उनकी कठिनाइयों का अनुभव किया । वेलिंग्टन में भी मैं उनके पास ही कहा था। वहां उन्हें छोटी-छोटी-सी बातों मैं असुविधा होती थी। वह उन्हें ढा़कने शुभ प्रयत्न करते थे; फिर भी वे मेरे ध्यान में आ जाया करती थीं ।

सम्मेलन में भाबुक ईसाइयों का अच्छा सम्मिलन हुआ। उनकी श्रद्धा देख कर मुझे आनंद हुआ है मि० मरेसे परिचय हुआ। मैंने देखा कि मेरे लिए बहुतेरे लोग प्रार्थना कर रहे थे। उनके कितने ही भजन मुझे बहुत ही मीठे मालूम हुए ।

सम्मेलन तीन दिन तक हुआ। सम्मेलन में सम्मिलित होनेवालों की धार्मिकता को तो मैं समझ सका, उसकी कद्र भी कर सक, परंतु अपनी मान्यता--- अपने धर्म---में परिवर्तन करने का कारन न दिखाई दिया। मुझे यह न मालूम हुआ कि मैं अपने को ईसाई कहलाने पर ही स्वर्ग को जा सकता हूं या मोक्ष पा सकता हूँ । जब मैंने यह बात अपने भले ईसाई मित्रों से कहीं तब उन्हें दुःख तो हुआ; पर में लाचार था ।

मेरी कठिनाइयां गहरी थीं। यह बात कि ईसामसीह ही एकमात्र ईश्वर का पुत्र है, जो उसको मानता है उसीका उद्धार होता है, मुझे न पटी । ईश्वर के यदि कोई पुत्र हो सकता है तो फिर हम सब उसके पुत्र हैं । ईसामसीह यदि ईश्वरसम हैं, ईश्वर ही है, तो मनुष्य-मात्र ईश्वरसम हैं, ईश्वर हो सकते हैं । ईसा को मृत्यु से और उसके लहू से संसार के पाप धुल जाते हैं, इस बात का अक्षरश: मानने के लिए बुद्धि किसी तरह तैयार न होती थी। रूपक के रूप में यह सत्य भले ही हो । फिर ईसाई मत के अनुसार तो मनुष्य को ही आत्मा होती है। दूसरे जीवों को नहीं, और देह के नाशके साथ ही उसका भी सर्वनाश हो जाता है; पर मेरा मन इसके विपरीत था ।

ईसाको त्यागी, महात्मा, दैवी शिक्षक मान' सकता था; परंतु एक अद्वितीय पुरुष नहीं । ईसा की मृत्यु से संसार को एक भारी उदाहरण मिला; परंतु उसकी