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पृष्ठ:Satya Ke Prayog - Mahatma Gandhi.pdf/१५९

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अध्याय १६ 'को जाने कल की


एना किंग्सफर्ड के साथ मिलकर 'परफेक्ट वे' (उत्तम मार्ग) नामक पुस्तक लिख थी । वह मुझे पढ़ने के लिए भेजी । प्रचलित ईसाई-धर्म को उसने खंडन था । 'बाइबिल का नवीन अर्थ' नामक पुस्तक भी उन्होंने मुझे भेजी । ये पुस्तके मुझे पसंद आईं। उनसे हिंदू-मत को पुष्टि मिली । टॉलस्टाय की वैकुंठ तुम्हारे हृदय में है ' नामक पुस्तक ने मुझे मुग्ध कर लिया। उसकी बड़ी गहरी छाप मुझपर पड़ी। इस पुस्तक की स्वतंत्र विचार-शैली, उसकी प्रौढ़ नीति, उसके सत्य के सामने मि० कोट्स की दी हुई तमाम पुस्तके शुष्क मालूम हुई ।

इस प्रकार मेरा यह अध्ययन मुझे ऐसी दिशा में ले गया जिसे ईसाई मित्र नहीं चाहते थे । एडवर्ड मेटलैंड के साथ मेरा पत्र-व्यवहार काफी समय तक रहा । कवि (रायचंद) के साथ तो अंत तक रहा। उन्होंने कितनी ही पुस्तके भेजी । उन्हें भी पढ़ गया। उनमें ‘पंचीकरण', 'मणिरत्नमाला', 'योगवासिष्ठ' की मुमुझु-प्रकरण, हरिभद्र सुरिका ‘षड्दर्शन-समुच्चय' इत्यादि थे ।

इस प्रकार यद्यपि मैं ऐसे ते चल पड़ा, जिसका खयाल ईसाई मित्रों न किया था, फिर भी उनके समागमने जो धर्म-जिज्ञासा मुझमें जागृत कर दी थी उसके लिए तो मैं उनका चिर-कालीन ऋणी हैं। उनसे मेरा यह संबंध मुझे हमेशा याद रहेगा ! ऐसे मीठे और पवित्र संबंध आगे और भी बढ़ते गये, घटे नहीं हैं।

१६
“को जाने कलकी ?”
खबर नह इस जुग पल की
मसझ मन! को जाने कल की?

मुकदमा खत्म हो जाने के बाद मेरे प्रिटोरिया मैं रहने का कोई प्रयोजन न रहा था। सो मैं डरबन गया। वहां जाकर घर (भारतवर्ष) लौटने की तैयारी की; पर अब्दुल्ला सेठ भला मुझे आदर-सत्कार किये बिना क्यों जाने देने लगे ? उन्होंने सिडनहैम में मेरे लिए खान-पान का एक जलसा ? किया । सारा दिन उसमें लगनेवाला था ।

मेरे पास कितने ही अखबार रक्खे हुए थे। उन्हें मैं देख रहा था । एक