पृष्ठ:Satya Ke Prayog - Mahatma Gandhi.pdf/१७७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१५९
अध्याय २१ : तीन पोंड का कर


तरह की भाग-तरकारियां बोईं। हिंदुस्तान की कितनी ही मीठी तरकारियां बोई ? जो साग-तरकारी वहां पहले मिलती थीं उन्हें सस्ता कर दिया। हिंदुस्तान से आम लाकर लगाया; पर इसके साथ ही वे व्यापार भी करने लगे । घर बनाने के लिए जमीने खरीदी ओर मजूर से अच्छे जमींदार और मालिक बनने लगे । मजूर की दशासे मालिक की दशा को पहुँचने वाले लोगों के पीछे स्वतंत्र व्यापारी वहां आये। स्वर्गीय सेठ अदुवकर आदम सबसे पहले व्यापारी थे, जो वहां गये। उन्होंने अपना कारबार खूब जमाया ।

इससे गोरे व्यापारी चौंके । जब उन्होंने भारतीय कुलियों को बुलाया और उनका स्वागत किया तब उन्हें उनकी व्यापार-क्षमता का अंदाज न हुआ था । उनके किसान बनकर आजादी के साथ रहने में तो उस समय तक उन्हें आपत्ति न थी, परंतु व्यापार में उनकी प्रतिस्पर्धा उन्हें नागवार हो गई।

यह हैं हिंदुस्तानियों के खिलाफ आवाज उठाने का मूल कारण ।।

अब इसमें और बात भी शामिल हो गई। हमारी भिन्न और विशिष्ट रहन-सहन, हमारी सादगी, हमें थोड़े मुनाफे से होनेवाली संतोष, आरोग्य के नियमों के विषयों हमारी लापरवाही, घर-आंगन को साफ रखने का आलस्य, उसे साफ सुथरा रखने में कंजूसी, हमारे जुदे-जुदे धर्म---ये सब बातें इस विधि को बढ़ानेवाली थीं ।

यह विरोध एक तो उस मताधिकार को छीन लेने के रूप में और दूसरा गिरमिटियों पर कर बैठाने के रूप में सामने झाया । कानून के अलावा भी तरह तरह की खुचरपट्टी चल रही थी सो अलग ।

पहली तजवीज यह पेश हुई थी कि पांच साल पूरे होने पर गिरमिटिया जबरदस्ती वापस लौटा दिया जाय । वह इस तरह कि उसकी गिरमिट हिंदुस्तान में जाकर पूरी हो; पर इस तजवीज को भारत-सरकार मन्जूर न कर सकती थी। तब ऐसी तजवीज़ हुई कि-----

१----मजदूरी का इकरार पूरा होने पर गिरमिटिया वापस हिंदुस्तान चला जाय । अथवा---

२-बो-दो वर्ष की गिरमिट नये सिरे से ज्ञात रहे और ऐसी हर गिरमिट के समय उसके वेतन में कुछ वृद्धि होती रहे । -