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धर्म-निरीक्षण


पड़ा था। उसने गिरमिटियों को पूरा-पूरा योग देना पड़ा। कितनों को ही गोली का शिकार होना पड़ा। दस हजार से ऊपर हिंदुस्तानियों कों जेल भोगनी पड़ी।

पर अंत मैं सत्य विजयी हुआ। हिंदुस्तानियों की तापश्चार्य के रूप में सत्य प्रत्‍याछ पता हुआ है उसके लिए अद अदा, धीरज र सतत आंदोलनकी आवश्यकता थी। यदि लोग हारकर बैठ जाते, कांग्रेस लड़ाई को भूल जाती, और कर को अनिवार्य समझकर घुटने टेक देती, तो आज तक यह कर गिरमिटियों लिया जाता होता इस अपशयक टीका सारे दक्षिण अफ्रीका के भारतवासियों को तथा सारे भारतवर्ष को लगता।

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धर्म-निरीक्षण

इस प्रकार जो मैं लोक-सेवा मैं तल्लीन हो गया था, उसका कारण था आत्म-दर्शन की अभिलाषा ! यह समझकर कि सेवा के द्वारा ही ईश्वर की पहचान हो सकती है, मैंने सेवा-धर्म स्वीकार किया था। मैं भारत की सेवा करता था, क्योंकि वह मुझे सहज प्राप्त थी, उसमें मेरी रुचि थी । उसकी खोज मुझे न करनी पड़ी थी। मैं तो सफर करने, काठियावाड़ के षड्यंत्रों से छूटने और आजीविका प्राप्त करने के लिए दक्षिण अफ्रीका गया था; पर पड़ गया ईश्वर की खोजमें --- आत्म-दर्शन के प्रयत्न में । ईसाई-भाइयों ने मेरी जिज्ञासा बहुत तीव्र कर दी थी । वह किसी प्रकार शांत न हो सकती थी और मैं शांत होना चाहता भी तो ईसाई भाई-बहन ऐसा न होने देते; क्योंकि डरबन में मि० स्पेंसर वाल्टन ने, जोकि दक्षिण अफ्रीका के मिशन के मुखिया थे, मुझे खोज निकाला। मैं भी उनका एक कुटुंबीजन सा हो गया । इस संबंध का मूल हैं प्रिटोरिया में उनसे हुआ समागम। मि वाल्टन का तर्ज कुछ और ही था । मुझे नहीं याद पड़ता कि उन्होंने कभी ईसाई बनने की बात मुझसे कहीं हो; बल्कि उन्होंने तो अपना सारा जीवन खोलकर मेरे सामने रख दिया, अपना तमाम काम और हलचल के निरीक्षण का अवसर मुझे दे दिया। उनकी धर्मपत्नी भी बड़ी नम्र, परंतु तेजस्वी थीं।

मुझे इस दंपती की कार्य-पद्धति पसंद आती थी; परंतु हमारे अंदर जो