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आत्म-कथा : भाग २
  • आपको अगर कुछ देखना हो तो अभी मेरे साथ घर चलिए।

मैंने कहा---' इसका क्या मतलब ? कही भी आखिर क्या बात है? ऐसे 'वक्त मेरे घर आने की क्या जरूरत, और देखना भी क्या है ?"

  • ना आओगे तो पछताओगे। आपको इससे ज्यादा नहीं कहना चाहता।" सोइया बोला।

उसकी दृढता ने मुझपर असर किया। अपने मुंशी को साथ लेकर घर गया। रसोइया आगे चला ।

घर पहुंचते ही वह मुझे दुमंजिले पर ले गया। जिस कमरे में वह साथी रहता था, उसकी और इशारा करके कहा--" इस कमरे को खोलकर देखो।'

अब मैं समझा, मैंने दरवाजा खटखटाया। जवाब क्या मिलता ? मैंने बड़े जोर से दरवाजा ठोंका। दीवार कांप उठी। दरवाजा खुला। अंदर एक बदचलन औरत थी। मैंने उससे कहा--- " बहन, तुम तो यहां से इसी दम चल दो । अब भूलकर यहां कदम मत रखना।"

साथी से कहा---' आज से आपका-सेरा संबंध टूटा। मैं अबतक खूब धोखे में रहा और बेवफा बना। मेरे विश्वास का बदला यही मिलना चाहिए था ?

साथ बिगड़ा। मुझे धमकी देने लगा----" तुम्हारी सब बातें प्रकट कर दूंगा !'

“मेरे पास कोई गुप्त बात है ही नहीं। मैंने जो-कुछ किया हो उसे खुशी से प्रकट कर देना; पर तुम्हारा संबंध आजसे खत्म है।

साथी अधिक गर्म हुआ ! मैंने नीचे खड़े मुंशी से कहा--" तुम जाओ; पुलिस सुपरिटेंडेंट से मेरा सलाम कहो और कहा कि मेरे एक साथी ने मेरे साथ दगा किया है। उसे मैं अपने घर में रखना नहीं चाहता। फिर भी वह निकलने से इन्कार करता है। मेहरबानी करके मदद भेजिए।"

अपराधी के बराबर दीन नहीं। मेरे इतना कहते ही वह ठंडा पड़ा है। माफी मांगी। आजिजी से कहा- सुपरिटेंडेंट के यहां अदमी ने भेजिए। और तुरंत घर छोड़ देना स्वीकार किया।

इस घटना ने ठीक समय पर मुझे सावधान किया। वह साथी मेरे लिए मोह-रूप और अनिष्ट था, यह बात अब जाकर मैं स्पष्ट रूप से समझ सका।