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पहला भाग

जन्म

गांधी-परिवार, कहते हैं, पहले पंसारीका[१] काम करता था। परंतु मेरे दादासे लेकर तीन पुश्ततक उसने दीवानगिरी की है। जान पड़ता है, उत्तमचंद गांधी, उर्फ श्रोता गांधी, बड़े टेकवाले थे। उन्हें राज-दरबारी साजिशोंके कारण, पोरबंदर छोड़कर जूनागढ़ राज्यमें जाकर रहना पड़ा था। वहां गये तो उन्होंने बायें हाथ से नवाब साहबको सलाम किया। जब किसीने इस स्पष्ट गुस्ताखी का कारण पूछा, तो उत्तर मिला- 'दाहिना हाथ तो पोरबंदरके सुपुर्द हो चुका है।'

श्रोता गांधीने एक-एक करके अपने दो विवाह किये थे। पहली पत्नी से चार लड़के हुए थे और दूसरी से दो। लेकिन अपना बचपन याद करते हुए मुझे यह खयाल तक नहीं आता कि ये भाई सौतेले लगते थे। उनमें पांचवें करमचंद गांधी, उर्फकबा गांधी और अंतिम तुलसीदास गांधी थे। दोनों भाई बारी-बारीसे पोरबंदर में दीवान रहे थे। कबा गांधी मेरे पिताजी थे। पोरबंदर की दीवानगिरी छोड़ने के बाद वह 'राजस्थानिक कोर्ट'के सभासद रहे थे। इसके पश्चात् राजकोटमें और फिर कुछ समय बांकानेरमें दीवान रहे। मृत्यु के समय राजकोट-दरबारके पेंशनर थे।

कबा गांधीके भी एक-एक करके चार विवाह हुए थे। पहली दो-पत्नियोंसे दो लड़कियां थीं; अंतिम, पुतलीबाईसे एक कन्या और तीन पुत्र हुए, जिनमें सबसे छोटा मैं हूँ।

  1. गुजरात-काठियावाड़में पंसारीको गांधी कहते हैं।-अनु०