पृष्ठ:Satya Ke Prayog - Mahatma Gandhi.pdf/२३०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।



२१०
आत्म-कथा : भाग ३


ब्रह्मचर्य का पालन करने के लिए पहले स्वादेंद्रिय को वश में करना चाहिए। मैंने खुद अनुभव करके देखा है कि यदि स्वाद को जीत ले तो फिर ब्रह्मचर्य अत्यंत सुगम हो जाता है। इस कारण इसके बाद मेरे भोजन प्रयोग केवल अन्नाहार की दृष्टि से नहीं, पर ब्रह्मचर्यं की दृष्टि से होने लगे । प्रयोग द्वारा मैंने अनुभव किया कि भोजन कम, सादा, बिना मिर्च-मसाले का और स्वाभाविक रूप में करना चाहिए । मैंने खुद छ: साल तक प्रयोग करके देखा है कि ब्रह्मचारी का आहार वन-पके फल हैं । जिन दिनों मैं हरे या सूखे वन-पके फलों पर ही रहता था, उन दिनों जिस निर्विकारता का अनुभव होता था, वह खुराक में परिवर्तन करने के बाद न हुआ । फलाहार के दिनों में ब्रह्मचर्य सरल था; दुग्धाहार के कारण अब कष्टसाध्य हो गया हैं । फलाहार छोड़कर दुग्धाहार क्यों ग्रहण करना पड़ा, इसका जिक्र समय आने पर होगा ही । यहां तो इतना ही कहना काफी है कि ब्रह्मचारी के लिए दूध का आहार विध्नकारक है, इसमें मुझ लेशमात्र संदेह नहीं । इससे कोई यह अर्थ न निकाल ले कि हर ब्रह्मचारी के लिए दूध छोड़ना जरूरी है । आहार का प्रसर ब्रह्मचर्य पर क्या और कितना पड़ता है, इस संबंध में अभी अनेक प्रयोगों की प्रावश्यकता है । दूध के सदृश शरीर के रग-रेशे मजबूत बनाने वाला और उतनी ही आसानी से हजम हो जानेवाला फलाहार अब तक मेरे हाथ नहीं लगा हैं । न कोई वैद्य, हकीम या डाक्टर ऐसे फल या अन्न बतला सके हैं । इस कारण दूध को विकारोंत्पादक जानते हुए भी अभी मैं उसे छोड़ने की सिफारिश किसी से नहीं कर सकता ।

बाहरी उपचारों में जिस प्रकार आहार के प्रकार की और परिमाण की मर्यादा आवश्यक है उसी प्रकार उपवास की बात भी समझनी चाहिए । इंद्रियां ऐसी बलवान् हैं कि उन्हें चारों ओर से, ऊपर-नीचे दशों दिशाओं से, जब घेरा डाला जाता हैं तभी वे कब्जे में रहती हैं । सब लोग इस बात को जानते हैं कि आहार बिना वे अपना काम नहीं कर सकती । इसलिए इस बात में मुझे जरा भी शक नहीं हैं कि इंद्रिय-दमन के हेतु इच्छा पूर्वक किये उपवासों से इंद्रिय-दमन में बड़ी सहायता मिली हैं । कितने ही लोग उपवास करते हुए भी सफल नहीं होते । इसका कारण यह हैं कि वे यह मान लेते हैं कि केवल उपवास से ही सब काम हो जायगा और बाहरी उपवास-मात्र करते हैं; पर मन में छप्पन भोगों का ध्यान करते रहते हैं । उपवास के दिनों में इन विचारों का स्वाद चक्खा करते हैं कि उपवास पूरा होने पर