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पृष्ठ:Satya Ke Prayog - Mahatma Gandhi.pdf/२३७

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अध्याय १० : बोअर-युद्ध

लिए लगा हुआ था, फिर भी आवश्यकताके समय प्रत्यक्ष युद्ध-क्षेत्रकी हद अंदर भी काम करनेका अवसर में मिला । ऐसी जोखिममें न पड़ने का इकरार सरकारने अपनी इच्छाले हमारे साथ किया था; परंतु स्पियाकोपकी हारके बाद स्थिति बदली । इस कारण जनरल बुलरने संदेश भेजा कि यद्यपि आप जोखिमकी जगह काम करनेके लिए बंधे हुए नहीं हैं, फिर भी यदि आप खतरेका सामना करके घायल सिपाहियोंको अथवा अफसरोंको रणक्षेत्रसे उठाकर डोलियोंमें ले जाने लिए तैयार हो जायंगे तो सरकार आपका उपकार मानेगी। इधर हम तो जोखिम उठाने के लिए तैयार ही थे । अतएव स्पियाकोपके युद्धके बाद हम गोली-बारूदकी हदके अंदर भी काम करने लगे ।

इन दिनों में सबको कई बार बीस-पचीस मीलकी मंजिल तय करनी पड़ती थी। एक बार तो घायलोंको डोलीमें रखकर इतनी दूर चलना भी पड़ा था । जिन घायल योद्धानों को हम उठाकर ले गये उनमें जनरल बुडगेट इत्यादि भी थे ।

छः सप्ताहके अंतमें हमारी टुकड़ीको रुखसत दी गई। स्पियांकोप और बालक्रांजैकी हारके बाद लेडी स्मिथ आदि-आदि स्थानोंको बोअरोके घेरेसे तेजीके साथ मुक्त करनेका विचार ब्रिटिश सेनापतिने त्याग दिया और इंग्लैंड तथा हिंदुस्तानसे और सेना आनेकी राह देखने तथा धीरे-धीरे काम करनेका निश्चय किया था ।

हमारी उस छोटी-सी सेवाकी उस समय बहुत स्तुति हुई। उससे हिंदुस्तानियों की प्रतिष्ठा बढ़ी । अाखिर हिंदुस्तानी हैं तो साम्राज्यके वारिस ही' ऐसे गीत गाये गये । जनरल वुलरने अपने खरीतेमें हमारी टुकड़ीके कार्यकी प्रशंसा की। मुख़ियोंको लड़ाईके तमगे भी मिले ।।

इसके फलस्वरूप हिंदुस्तानी अधिक संगठित हुए। मैं गिरमिटिया हिंदुस्तानियोंके अधिक सम्पर्क में आ सका । उनमें अधिक जाग्रति हुई और यह भावना अधिक दृढ़ हुई कि हिंदु, मुसलमान, ईसाई, मदरासी, पारसी, गुजराती,


कि शत्रु भी उनको नुकसान नहीं पहुंचा सकते । अधिक तफसीलके लिए देखिए---‘द० अ० के सत्याग्रहका इतिहास, खण्ड १, अध्याय ९ ।