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आत्म-कथा : भाग ३

सिंधी, सव हिंदुस्तानी है। सबने माना कि अब हिंदुस्तानियोंके दुःख अवश्य दूर हो जायंगे। गोरोंके बर्तावमें भी उसके बाद साफ-साफ फर्क नजर आने लगा ।

लड़ाई में गोरों से जो संबंध बंधा, वह मीठा था। हजारों ‘टामियों के सहवासमें हम लोग आये। वे हमारे साथ मित्र-भावसे व्यवहार करते और इस खयालसे कि हम उनकी सेवाके लिए हैं, हमारे उपकार मानते ।

मनुष्य-स्वभाव दुःखके समय कैसा पसीज जाता है, इसकी एक मधुर- स्मृति यहां दिये बिना नहीं रह सकता। हम लोग चीवली छावनी की ओर जा रहे थे । यह बही क्षेत्र था, जहां लार्ड राबर्ट्सके पुत्र लेफ्टनेंट रावको मर्मांतक गोली लगी थी। लेफ्टनेंट राबर्टसके शवको ले जानेका गौरव हमारी टुकड़ीको प्राप्त हुआ था । लौटते वक्त धूप कड़ी थी। हम कूच कर रहे थे सब प्यासे थे । पानी पीनेके लिए रास्तेमें एक छोटा-सा झरना पड़ा। सवाल उठा, पहले कौन पानी पीये। मैंने सोचा था कि 'टामियों के पी लेनेके बाद हम पियेंगे। 'टामियों ने हमें देखकर तुरंत कहा---' पहले आप लोग पी लें। हमने कहा--- 'नहीं, पहले माप पीयें।' इस तरह बहुत देरतक हमारे और उनके बीच मधुर आग्रहकी खींचातानी होती रही ।

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नगर-सुधार : अकाल-फण्ड

समाजके एक भी अंगका खराब बने रहना मुझे हमेशा अखरता रहता है। लोगोंकी बुराइयोंको ढककर उनका वचाव करना अथवा उन्हें दूर किये बिना अधिकार प्राप्त करना मुझे हमेशा अरुचिकर हुआ है। दक्षिण अफ्रीका- स्थित हिंदुस्तानियोंपर एक आक्षेप हुआ करता था। वह यह कि हिंदुस्तानी अपने घर-बार साफ-सुथरे नहीं रखते और बहुत मैले रहते हैं। बार-बार यह बात कही जाती थी। उसमें कुछ सचाई भी थी। मेरे वहां होनेके आरंभ-काल ही में मैंने उसे दूर करनेका विचार किया था। इस इलजामको मिटानेके लिए शुरूआतमें समाजके लब्धप्रतिष्ठ लोगोंके घरों में सफाई तो शुरू हो गई थी; परंतु